Friday 30 March 2018

*दूर होते चले गए *

*दूर होते चले गए *

बेनूर करके मेरे चेहरे को, वो पुरनूर होते चले गए,
मैं तन्हा रह गया इंसानों सा, वो हूर होते चले गए।

मैं गुज़रता रहा अपनी हद से, ख़ुमारियों में इश्क़ की,
हुआ यूँ फिर मुझसे कि, कई क़ुसूर होते चले गए।

ना होती है मोहब्बत शर्त पर, ये तो ख़बर थी मुझको भी,
पर गर्दिश में था वो वक़्त जब, शर्त मंजूर होते चले गए।

उनकी ख़्वाहिशों के आगे, दिल मेरी सुनता ही कब था,
हम तो लाचार, बेबस दिल से, मजबूर होते चले गए।

सजदा किया था पत्थर-दिल का, ख़ुदा समझकर मैंने तो,
और फिर धीरे-धीरे वो नतीजतन, मगरूर होते चले गए।

मुझे लगा कि फ़ितरतन, वो सता रहें हैं मुझसे दूर जा,
इन्हीं ग़लतफ़हमियों में, मुझसे वो दूर होते चले गए।

पत्थर उछालना चाँद पर, आदत ये उसकी आम थी,
सारे ख़्वाब जो शीशों से थे, चकनाचूर होते चले गए।

मुसलसल वो करते रहे चोट, मेरे अध-घायल दिल पर,
ज़रा-ज़रा से ज़ख्म दिल के फिर, नासूर होते चले गए।

बेपरवाह मैं अपने दर्द से, तराशता रहा उसे अरसों,
मैं होता गया छलनी और वो कोहिनूर होते चले गए।

बदनाम 'अंश' होता गया, मैं शहर में उसके नाम से,
और वो शहर में मेरे नाम से, मशहूर होते चले गए।

~ कुमार सोनल 'अंश'

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