Tuesday 5 September 2017

उल्फत

मिली है जो उल्फत नज़रों में तुमसे,
इस तरह खो जाएगी, की वापस न आएगी,
मोहब्बत ऐसी हो जाएगी,
की फिर नज़र न मिलाएगी,
जो ये होता थोड़ा भी अहसास,
तनहा उल्फत न करते।  

मिली है जो उल्फत नज़रों में तुमसे,
इस तरह ज़िंदगी ख्याल हो जायेगी, की गुबार न जाएगी,
ग़श में हर शाम जाएगी,
की गमदीदा ग़ज़ल बन जाएगी,
तुझ को न बनाया होता जो खास,
तनहा उल्फत न करते।          

मिली है जो उल्फत नज़रों में तुमसे,
इस गैहान में रूह खो आएगी, की चैन न पायेगी,
चिराग के चश्म न बनाते,
चेहरों पर जज्ब जो दिख जाते,
मांगते खुदी से मोहलत,
पर तनहा उल्फत न करते। 

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