आपने इस प्रश्न में ये स्पष्ट नहीं किया है कि आप कौन सी दिल की धुन सुनने की बात कह रहे हैं। वो जो स्टेथोस्कोप से सुनते हैं या वो जो हम तब सुनते हैं जब हम कुछ करना चाहते हैं लेकिन सुनिश्चित नहीं कर पाते कि क्या करना है। जब आपने पूंछ ही लिया है तो चलिए आते हैं आपके प्रश्न पर और मेरे जबाब पर।
मैंने आज तक कभी भी अपने खुद के दिल की धुन को स्टेथोस्कोप की मदद से नहीं सुना है। लेकिन हां एक दो बार अपने दोस्तों के दिल की धुन को जरूर सुना है।
अब अगर आप उस दिल की धुन की बात कर रहे हैं जिसके बारे में अक्सर लोग कहते रहते हैं कि अपने दिल की सुनो। तो ऐसा मैंने कई बार किया है। इसके लिए मैं आपको अपना खुद का एक किस्सा सुनाऊंगा।
ये बात तब की है जब मैंने 9वीं क्लास में एडमिशन लिया था। मुश्किल से 4–5 दिन ही हुए होते क्लास जाते। कि अचानक से एक दिन मैं बीमार पड़ गया। जब आंख खुली तो खुद को हास्पिटल के बेड पर पाया। कई तरह की जांचें हुईं तो पता चला कि मेरे दिमाग का 5 सेमी. हिस्सा सूख चुका है उसमें ब्लड सप्लाई नहीं है। बहुत लम्बे समय तक इसका इलाज भी चला लेकिन कहीं से कोई फायदा भी नहीं हुआ था। डाक्टर ने मुझे कुछ भी करने से मना किया था जैसे कि मैं ना तो कहीं खेलने जा सकता था ना पढ़ सकता, ना ही टीवी देख सकता था। उसके बावजूद भी मैं चोरी छुपे थोड़ी बहुत देर पढ़ लिया करता था।
इतना सब हो जाने के बाद जब मैं अन्त में फिर से घर वालों के साथ डाक्टर के पास गया। तो डाक्टर का एक ही जवाब था कि मेरे पास बहुत कम समय है, मैं जितना जी रहा हूं बहुत है। मैं जो करना चाहूं मुझे करने दिया जाए। बस ये आदेश दे दिया कि मुझे किताबों से दूर रखा जाये वरना मेरा अन्त समय और भी नजदीक हो सकता है।
घर आने के बाद जब हर किसी ने मुझसे यही कहा कि अब पढ़ाई छोड़ दो। तो मैंने भी यही जिद पकड़ ली कि नहीं, मुझे तो पढ़ना है। और फिर घरवालों ने भी मेरी जिद को मान लिया। मेरा एडमिशन करा दिया गया फिर से। लेकिन मैं स्कूल नहीं जाता था। घर पर रहकर ही पढ़ता, सिर्फ परीक्षा देने ही जाता।
अब आप सोच रहे होंगे कि मैंने इसमें अपने दिल की धुन को कहां सुना। वो दिल की धुन मेरी जिद ही थी।
कहां जिसके पास बहुत कम समय था, वो इन्सान आज भी जिन्दा है। और एक डॉक्टर बनने की ओर अग्रसर है।
धन्यवाद
मैंने आज तक कभी भी अपने खुद के दिल की धुन को स्टेथोस्कोप की मदद से नहीं सुना है। लेकिन हां एक दो बार अपने दोस्तों के दिल की धुन को जरूर सुना है।
अब अगर आप उस दिल की धुन की बात कर रहे हैं जिसके बारे में अक्सर लोग कहते रहते हैं कि अपने दिल की सुनो। तो ऐसा मैंने कई बार किया है। इसके लिए मैं आपको अपना खुद का एक किस्सा सुनाऊंगा।
ये बात तब की है जब मैंने 9वीं क्लास में एडमिशन लिया था। मुश्किल से 4–5 दिन ही हुए होते क्लास जाते। कि अचानक से एक दिन मैं बीमार पड़ गया। जब आंख खुली तो खुद को हास्पिटल के बेड पर पाया। कई तरह की जांचें हुईं तो पता चला कि मेरे दिमाग का 5 सेमी. हिस्सा सूख चुका है उसमें ब्लड सप्लाई नहीं है। बहुत लम्बे समय तक इसका इलाज भी चला लेकिन कहीं से कोई फायदा भी नहीं हुआ था। डाक्टर ने मुझे कुछ भी करने से मना किया था जैसे कि मैं ना तो कहीं खेलने जा सकता था ना पढ़ सकता, ना ही टीवी देख सकता था। उसके बावजूद भी मैं चोरी छुपे थोड़ी बहुत देर पढ़ लिया करता था।
इतना सब हो जाने के बाद जब मैं अन्त में फिर से घर वालों के साथ डाक्टर के पास गया। तो डाक्टर का एक ही जवाब था कि मेरे पास बहुत कम समय है, मैं जितना जी रहा हूं बहुत है। मैं जो करना चाहूं मुझे करने दिया जाए। बस ये आदेश दे दिया कि मुझे किताबों से दूर रखा जाये वरना मेरा अन्त समय और भी नजदीक हो सकता है।
घर आने के बाद जब हर किसी ने मुझसे यही कहा कि अब पढ़ाई छोड़ दो। तो मैंने भी यही जिद पकड़ ली कि नहीं, मुझे तो पढ़ना है। और फिर घरवालों ने भी मेरी जिद को मान लिया। मेरा एडमिशन करा दिया गया फिर से। लेकिन मैं स्कूल नहीं जाता था। घर पर रहकर ही पढ़ता, सिर्फ परीक्षा देने ही जाता।
अब आप सोच रहे होंगे कि मैंने इसमें अपने दिल की धुन को कहां सुना। वो दिल की धुन मेरी जिद ही थी।
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