Friday 30 March 2018

प्यार, तुम और मैं - Quote by Ravindra Gangwar

आओ चलते हैं, बनायेंगे एक ऐसा जहां
होगा सिर्फ प्यार, तुम और मैं वहां
समा जायेंगे इस दुनिया की आगोश में
डाल कर हाथों में हाथ यूं तेरे मेरे

शोहर हो तुम उसके कोई खरीदार नहीं

शोहर हो तुम उसके कोई खरीदार नहीं..
तुम्हारे घर का बिस्तर हैं ये कोई रंगरंगेलियों का बाजार नहीं...

कभी तो जरा प्यार से उसकी रजामंदी को  टटोल लो ना..
मत बनाओ उसकी बेबसी को हर रात.. अपने तलब का खिलोना..

क्योंकि बीवी हुई तो क्या हुआ... हैं  तो वो भी इंसान...   दर्द तो उसे भी होता हैं ना.....

हाँ, जानती हूँ तुम यहीं कहोगे कि
उसके जिस्म के हर कतरे पे तुम्हारा हक हैं..
पर उसकी तकलीफों को समझना  ये भी तो तुम्हारा ही फर्ज हैं ना...

और एहतराम का रिश्ता होता हैं ये जनाब.. ना कि एक बार में वसूल कर लेने वाला कोई कर्ज..
तुम उसकी डरी सहमी सी चुपी को मर्जी ना मान लिया करो ना..

क्योंकि बीवी हुई तो क्या हुआ... हैं तो वो भी इंसान.. दर्द तो उसे भी होता हैं  ना....

इतना तो तुम भी जानते हो ना
वो तो अपनी आपबीती भी किसी से कह सकती नहीं ना...
बस अपनी दर्द भरी सिसकियों से सब सह जाती हैं वो
क्योंकि ये मामला ही बहुत अंदरूनी सा हैं ना...

पर सिर्फ जिस्म को रौंदने के लिये होता तो कोई निकाह नहीं ना..
एक बार तो पुछ लो आज उसकी हाँ हैं या ना हैं...
अगर जो हो उसकी ना भी तो.. जरा बालों को सहला कर अपनी बाहों में सुला लो ना...
जरूरी तो नहीं हर रोज बस उसके जिस्म से ही खेलना...
क्योंकि जनाब बीवी हुई तो क्या हुआ हैं तो वो भी इंसान.. दर्द तो उसे भी होता हैं Marriage is not an excuse of rape.. Please respect her feelings nd emotions she is your wife not a slave...  #speakagainstwrong #maritalrape #standagainstrape

*दूर होते चले गए *

*दूर होते चले गए *

बेनूर करके मेरे चेहरे को, वो पुरनूर होते चले गए,
मैं तन्हा रह गया इंसानों सा, वो हूर होते चले गए।

मैं गुज़रता रहा अपनी हद से, ख़ुमारियों में इश्क़ की,
हुआ यूँ फिर मुझसे कि, कई क़ुसूर होते चले गए।

ना होती है मोहब्बत शर्त पर, ये तो ख़बर थी मुझको भी,
पर गर्दिश में था वो वक़्त जब, शर्त मंजूर होते चले गए।

उनकी ख़्वाहिशों के आगे, दिल मेरी सुनता ही कब था,
हम तो लाचार, बेबस दिल से, मजबूर होते चले गए।

सजदा किया था पत्थर-दिल का, ख़ुदा समझकर मैंने तो,
और फिर धीरे-धीरे वो नतीजतन, मगरूर होते चले गए।

मुझे लगा कि फ़ितरतन, वो सता रहें हैं मुझसे दूर जा,
इन्हीं ग़लतफ़हमियों में, मुझसे वो दूर होते चले गए।

पत्थर उछालना चाँद पर, आदत ये उसकी आम थी,
सारे ख़्वाब जो शीशों से थे, चकनाचूर होते चले गए।

मुसलसल वो करते रहे चोट, मेरे अध-घायल दिल पर,
ज़रा-ज़रा से ज़ख्म दिल के फिर, नासूर होते चले गए।

बेपरवाह मैं अपने दर्द से, तराशता रहा उसे अरसों,
मैं होता गया छलनी और वो कोहिनूर होते चले गए।

बदनाम 'अंश' होता गया, मैं शहर में उसके नाम से,
और वो शहर में मेरे नाम से, मशहूर होते चले गए।

~ कुमार सोनल 'अंश'

Thursday 29 March 2018

Love - Quote by Ravindra Gangwar

"Love is not the only thing on my mind. I have other woes...."

हमराही - Quote by Ravindra Gangwar

भटकते हैं जो गलियों में जीने के लिए !
वो मुसाफिर नहीं, हमराही हैं !!
धिक्कारते हो तुम जिसे, भूलकर अपनी आवो-हवा !
हकदार इस जहां का उनका ही गुरूर है !!

मेरी रूह - Quote by Ravindra Gangwar

सुनो ! तुम चाहो तो पास आ सकते हो !
पर मेरे, मेरी रूह के नहीं !!
हूं मैं अक्श किसी और का !
गर दे वो इजाजत तुझे !!

Wednesday 28 March 2018

जाम नजरों के - Quote by Ravindra Gangwar

थोड़ा और करीब आओ ना, इश्क करने को जी चाहता है !
तुम जाम अपनी नजरों से पिलाना, मैं थोड़ा और बहक जाऊं !!

ये दुनिया - Quote by Ravindra Gangwar

ये जो दुनिया है ना, कभी-कभी अजीब सी लगती है !
खुश है खुद से, फिर क्यों नाखुश दूसरे से लगती है !!

कहे जो कभी कोई, तो बात तू ना मान उसकी !
है जहर घुला हर मन में, फिर भी कभी साथ तो देती है !!

ख्वाब - Quote by Ravindra Gangwar

ख्वाबों में आकर यूं ही, चले जाना अच्छा था !
ना तड़प दिल की बढ़ाते, आंख चुराना अच्छा था !!

मिली जो इक नज़र तुमसे, भूल गया अपने आप को !
हुआ सवार इश्क की कश्ती में, डूब जाना अच्छा था !!

रास्ते एक हैं हम दोनों के, बस दिशायें बदली हैं !
होगी मुलाकात फिर तुमसे, लौट जाना अच्छा था !!

इस इश्क में मेरे सवाल मैं था, तो जबाव तुम थे !
फिर इस सवाल का, जबाव धूंढ़ लाना अच्छा था !!

खामोशियां - Quote by Ravindra Gangwar

बर्बाद रातों के सिवा, अब कुछ नहीं पास मेरे !
बस खामोशियां हैं, और कुछ सिसकियां !!

Monday 26 March 2018

तन्हा - Quote by Ravindra Gangwar

तन्हाइयों में ढूंढ़ने खुद को, निकला हूं चिराग लेकर !
पहुंच कर मंजिल पर, फिर तन्हा होने से डर लगता है !!

हम मुसाफ़िर यूं ही मसरूफ़े सफ़र जाएंगे

हम मुसाफ़िर यूं ही मसरूफ़े सफ़र जाएंगे
बेनिशां हो गए जब शहर तो घर जाएंगे

किस क़दर होगा यहां मेहर-ओ-वफ़ा का मातम
हम तेरी याद से जिस रोज़ उतर जाएंगे

जौहरी बंद किए जाते हैं बाज़ारे-सुख़न
हम किसे बेचने अलमास-ओ-गुहर जाएंगे

नेमते-ज़ीस्त का ये करज़ चुकेगा कैसे
लाख घबरा के ये कहते रहें मर जाएंगे

शायद अपना ही कोई बैत हुदी-ख़्वां बनकर
साथ जाएगा मेरे यार जिधर जाएंगे

‘फ़ैज़’ आते हैं रहे, इश्क़ में जो सख़्त मक़ाम
आने वालों से कहो हम तो गुज़र जाएंगे

       ©®फैज अहमद फैज