Thursday 19 April 2018

सोचा करता हूँ - नीरज निश्चल 

सोचा करता हूँ मै तेरा ओहदा  रब से कम क्या होगा ।
हिज़्र में जब है इतनी लज्जत वस्ल का आलम क्या होगा ।

इश्क के पहलू में तो खिजां भी नूर खिलाती है दिल में,
ये मेरा भगवान ही जाने फूलों का मौसम क्या होगा ।

माना तेरी खबर नहीं कुछ लेकिन मै बेखबर नहीं,
अपना हाल बता देता है हाले हमदम क्या होगा ।

रहकर मुझसे दूर तू साथी मेरे कितने पास भी है,
इस दुनिया मे कोई तुझसा मेरा महरम क्या होगा ।

‘नीरज’ जिसकी राहों में ये लुत्फे जीवन पाया है,
तड़प उठा हूँ सोच के उस मंजिल का संगम क्या होगा ।

नीरज निश्चल

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