गजल : कुमार अरविन्द
वक्त का वक्त क्या है पता कीजिए |
बाखुदा हूं ‘ खुदा बाखुदा कीजिए |
दर्दे – दिल आज मेरे मुखालिब रहे |
सुखनवर से उन्हें ‘ आशना कीजिए |
चांद तक की अदा कुछ सँवर जायेगी |
अश्क आंखों से गर आबशा कीजिए |
कल्बे – रहबर इनायत बनी गर रहे |
चंद – लम्हों में फिर राब्ता कीजिए |
मशवरा ये हुकूमत तुम्हीं से लेगी |
नौजवानों खड़ा ‘ काफिला कीजिए |
जब वरक लफ्ज तेरे आगोश मे हैं |
दर्दे दिल लिख के ही रतजगा कीजिए |
मुझको अरविन्द हर सू नजर आते हैं |
मोजिज़ा ही सही मोजिज़ा कीजिए |
बाखुदा – खुदा के लिए , मुख़ालिब – आमने सामने , सुखनवर – शायर , आशना – परिचय , आबशा/आबशार – झरना , कल्बे रहबर – पथप्रदर्शक की पहले , राब्ता – मुलाकात , वरक – पन्ना , मोजिज़ा – चमत्कार
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