मेरे हाथों में खून लगा होता है। हर रात जब मैं सोता हूँ, तो अपने घाव उधेड़ देता हूँ, उनसे बहते रक्त को अपने हाथों में लेता हूँ और अपनी ज़ुबां से लगाकर चख लेता हूँ कुछ ज़ख़्म। दर्द होता है, दर्द पीकर भी।
आप पूछेंगे कि ये घाव किसके हैं?
सच कहूँ तो ये घाव उन सपनों के हैं जो मेरे बिस्तर पर नग्न निर्बल वैश्या की तरह पड़े रहते हैं। मैं उन्हें अपने आगोश में लेता हूँ, और सपनों की ये वैश्या मिलन के दौरान अपने लंबे नाखूनों से मेरा खून बहाती जाती है, बहाती जाती है।
हर सपना टूटता है साहब, सपनों के ज़मीर नहीं हुआ करते, सपने जुबान नहीं दिया करते अपने पूरा होने की।
कई बार तो यूं होता है कि जब ये वैश्या मुझसे मिलान की नामंजूरी देती है, मैं इन्हीं खूनी हाथों से घोंट देता हूँ गला उसका और सुला देता हूँ उसे मौत की नींद।
कई लाशें है मेरे कमरे में, जो वजूद की सतह पर बस, बदबू कर रही हैं।
अगले दिन?
अगले दिन क्या? फिर एक नया सपना, फिर एक नई वैश्या।
तो क्या, सपने भी ना देखे जाएं?
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