Sunday, 27 August 2017

''ग़ज़ाला''

मैं अपने किसी ज़ाती काम से लखनऊ गया था और उसके बाद वहाँ से मुझे अपने ननिहाल कानपुर जाना था अपनी माँ को घर वापस ले जाने के लिए। लखनऊ से कानपुर, लोकल ट्रेन से क़रीब 1.5-2 घंटे का छोटा सा सफर है। पर सारा दिन काम की भागदौड़ से सर में दर्द टंकार सा मार रहा था।

ये तो पक्का था कि सफर बोर लगने वाला था और 2 घंटे 2 दिन जैसे बीतने वाले थे।

ट्रेन आई और मैं बैठ गया जैसे-तैसे जगह लेकर। सामने वाली सीट पर करीब मेरी हमउम्र या 1-2 साल कम उम्र होगी मुझसे, एक मोहतरमा आकर बैठ गयीं। बेहद ख़ूबसूरत तो नहीं थीं वो, पर अच्छी थीं।

मेरी इन बातों का गलत मतलब ना निकालिएगा आप सब।

ख़ैर ट्रैन चली और यूँ मेरे बोरिंग सफ़र की शुरुआत हो गई। एक दो बार उन मोहतरमा से नज़र टकराई और इधर उधर हो लीं। फिर अचानक मुझे अपने इस बोरिंग सफ़र में लुत्फ़-अंदोज़ी के आसार नज़र आये या यूँ कहें कि कुछ शरारत सूझी। अब यहाँ मुझे अपने बारे में कुछ बताना ज़रूरी हो गया है इससे पहले कि आप सब मुझे लोफ़र समझ लें।

वैसे तो इत्मिनान-पसंद इंसान हूँ, कम बोलता हूँ। मेरी जो ख़वातीन दोस्त (महिला मित्र) हैं वो मुझे प्यार से खड़ूस बोलती हैं और मैं एतराज़ भी नहीं करता इस बात पर।

असल मुद्दे पर आते हैं अब। मैंने सोचा क्यों ना आज अपने कंफर्ट ज़ोन से बाहर निकलकर कुछ नया ट्राई किया जाये। तो मुझे अपने क़िरदार के खिलाफ़ हरक़त सूझी, वो क्या होता है, 'लाइन मारना'।

हालांकि ये काम मैंने पहले कभी नहीं किया था लेकिन ये सारे दिन की भागदौड़ और बोर सफ़र की वजह से कारस्तानी आई थी मेरे ज़हन में।

वैसे 'लाइन मारने' का कोई पक्का मतलब नहीं होता है। ब्रिटिश कॉउन्सिल के धुरंदर भी इस लफ्ज़ का मतलब ना समझ पाएंगे। हाँ पर 'लाइन मारने' के इलाकाई मतलब होते हैं। फ़िल्मी ज़बान में कहें तो इसका मतलब किसी लड़की को छेड़ने के मक़सद से इशारे करना। और हमारे बनारस में तो 'लाइन मारने' का मतलब करंट लगना होता है।

मेरा इरादा तो बस इतना था कि मैं ख़ुद को परख रहा था कि 'लाइन मारना' मेरे बस का है या नहीं। बचकानी सी हरक़त को आज़माना चाह रहा था। सो नज़र गई उसकी तरफ़ और टकराई। इस तरह बारहां नज़र मिलती रही, टकराती रही पर अब साथ में हल्की मुस्कराहट उतर आई थी।

तभी उसने 1-2 बार आँखें ऊपर नीचे करके कुछ इशारा सा किया। शायद मेरी किसी चीज़ के गिरे होने का इशारा था। जब नीचे देखा तो तो मेरा रुमाल गिरा था। झट से उठाया मैंने। फिर उनकी तरफ देखकर मुस्कुराया और 2 सेकेंड के लिए पलकों को बंद रख करके इशारे में शुक्रिया कहा। उसने भी मुस्कराहट के साथ शुक्रिया कबूल किया। सफ़र अच्छा लग रहा था अब। पर हम दोनों इस बात से बेख़बर थे कि किसका स्टेशन कब आ जाये और कौन उतर जाए, बस ये मानकर चल रहे थे कि शायद हमारा स्टेशन एक ही हो।

अब तक कोई जान पहचान नहीं सिर्फ इशारे ही हुए थे। करीब 1 घंटे का सफ़र बीत चुका था। बोरियत अब कोसों पीछे छूट चुकी थी। अगले स्टेशन पर उसने और मैंने समोसे लिए, वक़्त बीतता रहा। अब तक हमारे बीच एक लफ्ज़ भी बात नहीं हुई थी। समोसे ख़त्म हुए, हमारी नज़रें फिर टकराई और मैंने उसे उसके मुंह पर समोसे की झूठन लगे होने का इशारा किया। उसने झट से रुमाल से साफ किया और कुछ मेरे वाले ही अंदाज़ में शुक्रिया किया।

इतनी थोड़ी सी देर के सफ़र में बिना बात किये सिर्फ इशारों में हमने एक दूसरे को कम से कम शुक्रिया अदा करना सिखला दिया था।

तभी किसी के गाने की आवाज़ सुनाई दी। बाबा थे कोई। शायद उनकी आँखों में रोशनी नहीं थी। हथेली फैलाये गा रहे थे और जिसको जो लग रहा था उनकी हथेली में रख दे रहा था। जब वो हमारी सीट तक आये तो मोहतरमा फ़ोरन बटुए में हाथ दाल कर शायद सिक्के तलाशने लगी पर कुछ मिला नहीं। मैंने अपनी जेब से कुछ सिक्के हथेली में निकाले और उनकी तरफ बढ़ा दिए। एक बार तो उसने हिचक से सर ना में हिला दिया पर फिर मेरे दोबारा हथेली बढ़ाने पर उसने एक सिक्का उठाया और उन बाबा के हाथ पर रख दिया। 

बाबा चले गए और अब उसकी मुस्कराहट ज्यादा रोशन थी। मेरे लिए 'लाइन मारने' का यही तजुर्बा रहा। कोई स्टेशन आया, ट्रेन रुकने लगी और उसने भी अपना बैग उठाया और जाने लगी।

उसका स्टेशन आ गया था।

मैं बड़ी हिम्मत जुटा कर उठा और कहा, “तुम्हारा नाम क्या है?”

लोगो के शोर में सुनाई नहीं दिया उसने क्या बोला फिर वो मेरे कान के पास आई और बोली, "ग़ज़ाला।"

इतना बोलकर वो ट्रेन से उतर गई। उस नाम ने पलक झपकते ही मेरे ज़हन ने मज़हबी दीवार गढ़ दी। क्यों ना होता भला? राम-रहीम, महमूद-महेश इन नामों का मज़हबी फर्क तो बचपन से ही हमारे दिमाग में बो दिया जाता है। सो लाज़मी था इस दीवार का खड़ा होना। उसने ट्रेन से उतर कर जाते जाते मुस्कुराते हुए पलट कर मेरी तरफ देखा। वो मुस्कराहट जैसे मुझे उकसा रही थी मज़हबी दीवार तोड़ने के लिए। तब से आज तक मैं उस ज़हनी मज़हबी दीवार की एक एक ईंट गिरा रहा हूँ। 

यूँ तो 'ग़ज़ाला' का मतलब होता है जवां ख़ूबसूरत आँखों वाली लड़की, पर मेरे लिए ' ग़ज़ाला' का एक ही मतलब था, मुस्कराहट में लिपटा हुआ इंक़लाब।

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