खुली ज़ुल्फ जिसे उर्दू में "बरहमी" कहते है, हमेशा से शायरों और कवियों का पसंदीदा मौज़ू रहा है।
किसी ने खुली ज़ुल्फों को घटा कहा तो किसी ने बलखाती ज़ुल्फों को नागिन।
कभी ज़ुल्फ को काला जादू कहा गया तो कभी होंठों और रुख़्सारों को चूमते गेसुओं को बदतमीज़।
पर तेरी खुली नही..बंधी हुई ज़ुल्फें मुझे पसंद हैं। जब तू मेरे सामने से चलती हुई मेरे क़रीब से गुज़रती है.. अपने ही ख्यालों में खोई, ना जाने किस सोच में डूबी और चलते चलते एक ही झटके से अपने बालों को पकड़ कर उन्हें जूड़े में बांध उसमें पेंसिल फसा लेने का ये हुनर तुझे बहुत खास बनाता है।
तुझसे बात करते वक़्त तेरी उसी पेंसिल में मेरा दिल अटका सा रहता है। कभी संजीदा सी गुफ़्तगू करते हुए मुझसे, तू पेंसिल दांतों में दबाये बालो को बांधकर उसमें जब पेंसिल लगाती है तो इस अदा में डूबकर सब कुछ भूल सा जाता हूँ मैं।
कई मर्तबा मैंने महसूस किया है कि तेरी पेंसिल का रंग तेरा मूड ज़ाहिर करता है। जिस दिन तेरे बालो में लाल पेंसिल हो उस दिन तू ज़िंदादिल लगती है.. दिनभर दिल खोल के हँसती तो कभी बच्चों सी शरारती मुस्कान लिए घूमती। उस दिन तेरी आंखों में, मैं खुद के लिए प्यार देखता हूँ।
पीली पेंसिल का मतलब है आज तू बहुत खुश है। काली पेंसिल गर तूने जूड़े में लगा रखी है तो ज़रूर तू आज लड़ के आयी है या किसी से लड़ने की तैयारी में है। उस दिन तेरे क़रीब जाने से भी डर लगता है मुझे।
जिस दिन उस पेंसिल का रंग सफेद हो तो तेरे चेहरे पर एक सुकून सा हावी होता है, और मिज़ाज़ सूफियाना लगता है।
पेंसिल का रंग गहरा नीला हो तो मतलब तू बहुत उदास है।
मेरी पसंदीदा पेंसिल का रंग गुलाबी है.. क्योंकि उस दिन रोमानी एहसासात तुझ पर हावी रहता है। मेरी हर बात पर शर्मा कर नीची निगाह करके तेरा मुस्कुराना मेरे दिल की धड़कनें बढ़ा देता है। गुलाबी पेंसिल वाले दिन का मुझे बेसब्री से इंतज़ार रहता है क्योंकि वो दिन मेरे इज़हार-ए-मोहब्बत का दिन होता है।
ये एक राज़ की बात है जो मैं कभी तुझसे कह ना पाऊँगा, कि तुझको समझने में तेरी पेंसिल, मददगार रही है मेरी।
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