पुरानी किताब के मुड़े पन्ने
क्यों खोलने लगता है दिल
फुरसत मिलते ही
जो गुजर गया, वो गुजर गया
यादों के नश्तर
क्यों घोंपने लगता है दिल
फुरसत मिलते ही
चिडि़यों सा चहके, फूलों सा खिले
रोकने लगता है
क्यों नहीं देखता है दिल
फुरसत मिलते ही
जिस ने हाथ में हाथ दिया नहीं
आस उसी से लगा के
जाने क्यों बैठा है दिल.
– गीता यादवेंदु
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