Thursday, 31 August 2017

तन्हाई

बिस्तर की सिलवटों पर नींद बेचैन पड़ी है,
कभी तो हाथों से हटाता हूँ सिलवटें,
कभी पल्कें मूंद खुदको जगाता हूँ,
सुबह देखा जो सलवटे, निंदो से चेहरे पे पड़ी है,
उढ़कर ठन्डे पानी से चेहरा धो डाला,
था जो बनावटी चेहरा मेरा अब तक,
सजाया सवारा मुस्कुराकर लकीरों को खो डाला।
बाहर निकला देखा तेज बरसात है आज, 
थोड़ा सा भीगा थोड़ा सा सूखा रह गया,
गीले सूखे मौसम में अपनी तन्हाई को खो डाला।

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