बिस्तर की सिलवटों पर नींद बेचैन पड़ी है,
कभी तो हाथों से हटाता हूँ सिलवटें,
कभी पल्कें मूंद खुदको जगाता हूँ,
सुबह देखा जो सलवटे, निंदो से चेहरे पे पड़ी है,
उढ़कर ठन्डे पानी से चेहरा धो डाला,
था जो बनावटी चेहरा मेरा अब तक,
सजाया सवारा मुस्कुराकर लकीरों को खो डाला।
बाहर निकला देखा तेज बरसात है आज,
थोड़ा सा भीगा थोड़ा सा सूखा रह गया,
गीले सूखे मौसम में अपनी तन्हाई को खो डाला।
This blog is develope to provide a large content of Poetry, story, shayri and Quotes of different writers at one place.
Thursday, 31 August 2017
तन्हाई
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
-
आपने इस प्रश्न में ये स्पष्ट नहीं किया है कि आप कौन सी दिल की धुन सुनने की बात कह रहे हैं। वो जो स्टेथोस्कोप से सुनते हैं या वो जो हम तब सु...
-
शायद ही कोई ऐसा हो जिसे कभी प्यार हुआ ना हो वरना आज के दौर में हर इंसान इस मनचाही बीमारी की तरफ बढ़ता जा रहा है। कुछ को तो इसका मतलब भी नही...
-
है शौक यही, अरमान यही हम कुछ करके दिखलाएँगे, मरने वाली दुनिया में हम अमरों में नाम लिखाएँगे। जो लोग गरीब भिखारी हैं जिन पर न किसी की छा...
No comments:
Post a Comment