Wednesday 30 August 2017

*पहला प्यार ~एक अधूरी प्रेम कहानी*

सिलसिला चाहतों का हो शुरू,
लो ऐसा समाँ हो रहा है।
लब तो है खामोश मगर,
आँखों से सब बयां हो रहा है।
मत जाना दूर कभी तुमको दिल में छुपा कर रखते हैं ,
सब कहना पर कभी मत कहना अच्छा, तो हम चलते हैं।

जब साथ हो तुम अपने, घबराने की क्या बात है,
इस जहाँ में सबसे खूबसूरत, सिर्फ तुम्हारा साथ है।
मत जाना दूर कभी तुमको दिल में छुपा कर रखते हैं ,
सब कहना पर कभी मत कहना अच्छा, तो हम चलते हैं।

जब ये लाइंस देव ने स्टेज पर पढ़ी, तो सारा हॉल तालियों की गड़गड़ाहट से गूंज उठा। देव एक 32 वर्षीय युवक था ।एक मल्टीनेशनल कंपनी का एच आर एक्सेक्यूटिव देव, एक बहुत ही आकर्षक व्यक्तित्व वाला युवक था। उसने अपने इन 32 सालों में वह सब पा लिया था, जिसके वह सपने देखा करता था। दरअसल आज उसके बेटे आरव के स्कूल में एक फंक्शन था, जिसमें पार्टिसिपेंट्स के पेरेंट्स को परफॉर्म करना था। 6 साल के आरव की नजरों में उसके डैडी सुपरमैन थे। दुनिया का ऐसा कोई काम नहीं था, जो उसके डैडू ना कर पाते हो, सो उसने भी आज पार्टिसिपेट किया था और इसीलिए देव ने स्टेज पर आज यह कविता सुनाई थी।

अपने बेटे के लिए देव कुछ भी कर सकता था, तो यह तो सिर्फ स्टेज पर जाने की बात थी। कभी ऑडियंस से डरने वाला और अपनी बात कहने में हिचकने वाला देव, अपने बेटे के लिए स्टेज पर जाएगा ,उसने कभी सपने में भी नहीं सोचा था।

"मिस्टर देव, इतनी अच्छी कविता किसके लिए थी ये? क्या यह आपने लिखी है?"

जैसे ही होस्ट ने देव से पूछा, वह ज़रा सा सोच में पड़ गया। उसकी आँखें गीली होने लगीं। अपने आँसू  छिपाते हुए और अपनी आवाज़ संभालते हुए वह बोला, "यह देव की मम्मी, आरती ने लिखी थी और आज मैंने उन्हीं को डेडिकेट की है।"

कहते हुए उसका गला भर आया। इससे पहले कि होस्ट कुछ और पूछती, देव ने स्टेज छोड़ दिया और नीचे उतर आया। उधर आरव अपने पापा की बेस्ट परफॉर्मेंस पर खुश होकर अभी तक ताली बजा रहा था। विनर आरव ही था। नन्हें हाथों से ट्रॉफी पकड़े हुए वह अपने पापा की ओर आया और अपनी तोतली जुबान से माइक पर बोला, "बेस्ट डैडू की बेस्ट परफॉर्मेंस पर बेस्ट वाला प्राइज़। आई लव यू डैडू। यू आर माय हीरो एंड यू आर एवरीथिंग फॉल मी।"

घर आते ही देव ने सबसे पहले आरती को यह खुशखबरी दी।

"आरती देखो, तुम्हारा बेटा आज अपने स्कूल में फर्स्ट आया। पहली बार मैंने स्टेज पर कविता पढ़ी। वही जो तुमने मेरे लिए लिखी थी।"

आरती सिर्फ सुन रही थी। चुप थी। देव जानता था कि आरती कुछ नहीं बोलेगी।

बोलती भी कैसे, तस्वीरें बोलती कहाँ हैं?

दरअसल देव आरती की तस्वीर से बातें कर रहा था। आरती इस दुनिया में थी ही कहाँ उसका जवाब देने के लिए?

आरती देव का पहला प्यार थी और शायद आखिरी भी, क्योंकि 10 साल के बाद आज भी देव अकेला ही था।

इन दोनों की प्रेम कहानी शुरू हुई थी आज से 10 साल पहले, जब देव 22 साल का था और आरती से एक बुक फेयर में मिला था। आरती वहाँ कोई किताब खोज रही थी जो वह हर जगह ढूंढ कर थक चुकी थी और इसीलिए वह इस फेयर का इंतजार कर रही थी, लेकिन उसे वो किताब वहाँ भी नहीं मिली। देव अपने किसी पढ़ाकू दोस्त की बताई हुई बुक उसके लिए लेने आया था।

"क्या भैया, इतनी अच्छी बुक नहीं है आपके पास? मैं कितना इंतज़ार कर रही थी इस फेयर का। अब मैं कहाँ से लाऊँ, आप ही बताओ।"

"वो क्या है ना मैडम जी, कोई फेमस राइटर नहीं होगा। पहली ही बुक होगी उसकी, शायद इसीलिए नहीं है।"

"अरे! कमाल करते हो भैया, फेमस नहीं है तो क्या कोई अहमियत नहीं है? बस नाम ही चलता है क्या?काम का कोई मोल नहीं है? हद है।"

देव भी वहीं कोई बुक देखने में मसरूफ़ था। उसकी मासूमियत पर मुस्कुराते हुए बोला, "वैसे, कौन सी किताब चाहिए थी आपको?"

"राइटर का नाम तो अतुल शर्मा है, और बुक का नाम याद ही नहीं आ रहा पर हाँ, यह वही बुक है, जिसमें एक लड़की और लड़के की प्रेम कहानी है, जो कभी मिल नहीं पाते और अकेले ही ज़िंदगी काटते हैं।"

"कहीं आप अतुल शर्मा की 'अधूरी कहानी' के बारे में तो बात नहीं कर रही हैं?"  देव ने मुस्कुराते हुए पूछा।

"हाँ, वही! आपके पास है क्या वह बुक? आपको पता है मैं अतुल शर्मा की बहुत बड़ी फैन हूँ। मुझे उनके बारे में सिर्फ इतना पता था कि वह लखनऊ में रहते हैं। सिर्फ उनकी तस्वीर देखी थी और यही कहानी आधी पढ़ी थी और बस मैं उनकी फैन हो गई।"

"आधी कहानी मे ही फैन? अजीब हो यार," देव ने हँसते हुए कहा।
         
"जी हाँ, मैं ऐसी ही हूँ। वैसे आपके पास वो बुक है क्या?" आरती ने पूछा।

" दरअसल, अतुल मेरा बहुत अच्छा दोस्त है। लखनऊ में हम साथ पढ़ते हैं। यहाँ मैं उसी के लिए तो किताब लेने आया हूँ।"

"क्या? प्लीज मुझे एक बार उनसे मिलवा दो। सच में वह दोस्त हैं तुम्हारे? प्लीज मिलवा दो। मिलवा दोगे ना?" आरती लगभग पागल सी हो कर बोली।

"ओके यार, चिल। मैं मिलवा दूंगा," देव हंसा। "वैसे तुम्हारा नाम?"

"आरती, मैं यही कानपुर में रहती हूं। लॉ स्टूडेंट हूं और किताबों की शौकीन भी। तुम्हारा नाम?

"देव ,कानपुर में ही घर है। पढ़ाई के सिलसिले से 2 साल पहले लखनऊ गया था।"

"तो, अतुल से कब मिलवा रहे हो?" आरती ने बेचैन होते हुए पूछा।

"अभी तो छुट्टियां है। 2 महीने बाद ही वापस जाना होगा। तभी चलना तुम। तब तक हम लोग दोस्त भी बन जाएंगे," देव ने मुस्कुराकर कहा।

"दो महीने?" एक गहरी साँस छोड़ते हुए, थोड़ा सा मायूस होते हुए, आरती बोली।

देव को आरती की बेफ्रि़की, उसका दोस्ताना व्यवहार, पहली बार में ही उसका वो चंचल अंदाज़ भा सा गया था। घर आकर उसका चेहरा रह-रहकर देव की आँखों के सामने आ रहा था। उसकी आँखें, उसके वो उड़ते बाल, उसकी बात करने का अंदाज़... वो तो उसे भुला ही नहीं पा रहा था। जब होश में आया तो याद आया कि उसने आरती का नंबर तो लिया ही नहीं। वह अब उससे मिलेगा कैसे?

"ओह नो! अब क्या करूँगा? कैसे मिलूँगा उससे?" देव की बेचैनी बढ़ती ही जा रही थी। वह समझ ही नहीं पा रहा था कि क्या करे? वह दूसरे दिन का इंतजार करने लगा कि शायद वह कल फिर उसी पुस्तक मेले में आए। 3 दिन तक देव वहीं जाता और सुबह से शाम तक उसका इंतजार करता पर अफ़सोस तीनों दिन उसे निराशा ही मिली ।आख़िरी दिन सारी दुकानें हटने लगीं। देव मायूस हो गया।

"अब क्या मिलेगी वो? अब तो ये मेला भी एक साल बाद आएगा और फिर पता भी तो नहीं कि वह रहती कहाँ है?" देव इसी उधेड़बुन में था कि अचानक पीछे से आवाज आई।

" देव!"

आरती तेज कदमों से उसकी ओर आ रही थी।

"रुको! जाना मत," हाँफते हुए वह बोली।

"कहाँ थी आरती? मैं 3 दिन से तुम्हारा इंतजार करता था यहाँ। मुझे तो लगा कि अब तुमसे मिल ही नहीं पाउँगा।"

"अरे! देव, दरअसल, कवि सम्मेलन के सिलसिले में मुझे 3 दिन के लिए बाहर जाना पड़ा। इसीलिए आ ना सकी। बस, वहीं से अभी-अभी आई। तुम्हें देखा, तो लगा कि कहीं निकल ना जाओ इसीलिए जल्दी जल्दी आ रही थी।"

"कवि सम्मेलन?" देव ने हैरानी से पूछा।

"जी हाँ! देव बाबू ,मैं कविताएं लिखती हूँ।"

"वाह,  यार! कभी पढ़ाना।"

"बिल्कुल।"

उस दिन दोनों खूब देर तक घूमते रहे। एक दूसरे के अनछुए पहलुओं से रूबरू हुए। देव कानपुर के किदवई नगर इलाके का रहने वाला था। दो साल पहले ही लखनऊ गया था। दूसरे लड़कों की तरह क्रिकेट प्रेमी और यह कविता, कहानियों से कोसों दूर रहने वाला। उस दिन आरती से कविता सुनाने वाली बात सिर्फ उसे इंप्रेस करने के लिए थी।

वहीं आरती एक लॉ स्टूडेंट थी। कानपुर की ही रहने वाली। कविताएं लिखना उसका शौक था। वह दूसरों के हक के लिए खड़े रहने के लिए हमेशा तैयार रहती थी। देव आरती से प्यार तो करने ही लगा था, इन मुलाकातों ने उसे आरती की मासूमियत और सच्चे दिल से मिलवाया था और आज उसे करीब से जानने के बाद तो वह उसके और करीब आ गया था।

इतनी झल्ली लड़की, जो क्रिकेट सिर्फ इसलिए पसंद नहीं करती थी क्योंकि उसे लगता था कि इस खेल की वजह से राष्ट्रीय खेल और दूसरे खेलों को अहमियत नहीं मिलती है। कितनी सच्ची थी ना .... बहुत साफ दिल था उसका। यह मुलाक़ातें अब रोज होने लगी। घूमने जाना, मस्ती करना, घर पर घंटों फोन पर बातें, मैसेज... इस तरह से लगभग पूरे-पूरे दिन वह लोग साथ में ही रहते। आरती को भी देव में अपना सच्चा दोस्त मिला था। जैसे-जैसे जाने का दिन पास आने लगा, देव की बेचैनी बढ़ने लगी। वह कहना तो चाहता था आरती से, मगर उसे याद है बातों बातों में आरती ने बताया था कि उसे प्यार-व्यार में भरोसा नहीं क्योंकि वह जल्दी किसी पर विश्वास नहीं कर पाती। उसे लगता था कि रिश्तो के बंधन में बंधने से उसकी आज़ादी खत्म हो जाएगी।

आखरी दिन जब वो मिले, आरती खुश थी कि वह अपने पसंदीदा लेखक से मिलेगी।  देव थोड़ा सा उदास था। हिम्मत करके बोला, "आरती।"

"हाँ देव ,बोलो।"

"आई लव यू।"

आरती भौंचक्की सी खड़ी रही। हालांकि उसके लिए यह नई बात नहीं थी। अब तक ना जाने कितने ही लड़कों ने उसे यह बोला था पर सबके लिए उसका जवाब 'ना' ही होता था, पर ना जाने क्यों, वह देव को 'ना' नहीं बोल पा रही थी।

थोड़ी देर की खामोशी के बाद वह बोली, " देव! मैं तुम्हारे साथ नहीं चल सकती, तुम जाओ।"

बस, यही उसके आखरी शब्द थे। देव की ट्रेन आ चुकी थी। वह चला गया। 3 दिन तक ना कोई फोन और ना ही मैसेज। 3 दिन के बाद आरती ने ही देव को कॉल लगाया।

"देव! कैसे हो?" सकुचाते हुए उसने पूछा।

"मैं अच्छा हूँ।"  आवाज़ में सुकून था।

कांपती आवाज में आरती बोली, "देव! आई लव यू।"

थोड़ी देर तक सन्नाटा पसरा रहा।

"हाँ देव, तुम्हारे जाने के बाद मुझे एहसास हुआ कि मैं भी तो तुमको प्यार करती हूँ। उस दिन तुमको 'ना' नहीं बोल पायी। अब तक सबने मेरे चेहरे से प्यार किया, पर तुमने मेरे दिल से। मुझसे कुछ पूछा नहीं ,अपना प्यार थोंपा नहीं ।सब यही कहते थे कि आप बहुत सुंदर हो, मैं आपको बहुत खुश रखूंगा... वगैरह.. वगैरह, पर तुमने मुझसे बिना कोई उम्मीद रखे प्यार किया। तुम मुझसे इतनी दूर हो पर चाहकर भी मैं तुम पर अविश्वास नहीं कर पा रही।आई लव यू देव! आई लव यू।"

उस दिन दोनों काफी देर तक रोते रहे। फोन चलता रहा। दोनों कब सो गए पता ही नहीं चला। फिर ऐसा अक्सर होने लगा। कुछ दिन बाद आरती लखनऊ चली गई, अपने पसंदीदा लेखक से भी मिली और बाकी समय देव के साथ रही। पता ही नहीं चला कब इतनी मजबूत लड़की की कमज़ोरी बन चुका था देव। जो किसी के सामने नहीं रोती थी, अकेले में उसे आंसू बहाने के लिए देव के कंधे की जरूरत होती थी।

वो देव के लिए कविताएं लिखती और उसे सुनाती। देव को भी दिलचस्पी होने लगी थी आरती की कविताओं में। एक बार देव को बताया था कि एक कविता उसने आधी लिखी है जोे देव को पूरी करनी है।

"मैं, और कविता? भूल ही जाओ तुम। फिर तो वह आधी ही रहेगी हमेशा। वैसे सुनाओ तो ज़रा," उसने बात मजाक में टाल दी।

"ना होने पर मेरे कभी मत उदास होना,
दूर हो जाऊं कितनी भी ,पर हमेशा दिल के पास रहना छोड़ कर सबको आ जाती हूँ पास तुम्हारे,
भुला दूँ सब कुछ तुम्हारे सिवा, इसी तरह हमेशा मेरे खास रहना।
जुदा होने के फकत ख्याल से ही अश्क बरसते हैं,
सब कहना पर कभी मत कहना,
अच्छा तो हम चलते हैं ।"

जैसे ही आरती ने उसको ये सुनाया, वह भड़क गया।

"क्या ये दूर जाने की बातें करती रहती हो? बेकार की बातें मत किया करो।"

"चिल! इतनी जल्दी तुम्हारा पीछा नहीं छोडूंगी, जान," वो मुस्कुराते हुए बोली।

देव को कभी कभी डर लगता, जब आरती हमेशा गलत लोगों से लड़ने के लिए तैयार रहती। वह उसे हमेशा समझाता था कि ऐसा ना किया करे क्योंकि अगर उसे कुछ हो गया तो वह नहीं रह पाएगा। पर आरती, वो हर बार हँस के टाल देती।

खाली समय में दोनों अपने सुनहरे भविष्य के सपने संजोते। देव को याद है, एक बार आरती ने उससे कहा था, "देव! वो.. मैं ...तुमसे ...कुछ कहना चाहती हूँ।"

"हाँ आरती, कहो ना।"

"देव, हम ना एक बेबी गोद लेंगे। किसी को सहारा ही मिल जाएगा।" उसने बहुत हिम्मत करके, सकुचाते हुए ,धीरे से कहा था। मानो किसी इजाज़त की उम्मीद कर रही हो।

"ओके!" देव मुस्कुरा कर बोला।

"सच्ची?" वो कितनी खुश हो गई थी।

बस उसकी यही खुशी देखने के लिए तो कुछ भी कर सकता था देव। कौन कहता है कि दूर रहने से प्यार ज़्यादा दिन नहीं टिकता? इन दोनों को ही देख लीजिए। आरती यहाँ कानपुर में और देव वहाँ  लखनऊ में, फिर भी दोनों में इतना प्यार कि एक दूसरे के बिना रह नहीं सकते और इतना विश्वास कि शक शब्द की कोई गुंजाइश ही नहीं थी ।

"देव! मैंने ना अपने एक बेबी का नाम सोच लिया है।" एक शाम उसने देव से हंसते हुए कहा था ।

"अच्छा! पागल हो पूरी। वैसे मुझे भी बताओ ज़रा।" उसकी नादानी पर हंस रहा था वो।

"देखो बेटी का नाम अभी सोचा नहीं पर बेटे का नाम होगा आरव। 'आरती' का 'आर' और 'देव' का 'व' मिलाकर हो गया ना आरव। इस तरह हम लोग अपने बेटे के नाम में हमेशा जुड़े रहेंगे," बड़ी ही मासूमियत के साथ बोली थी वो।

देखते-देखते 3 साल बीत गए और इनका प्यार दिन पर दिन बढ़ता ही गया। कभी कोई गलतफहमी या बड़ा लड़ाई झगड़ा नहीं हुआ। छोटी- मोटी ,खट्टी-मीठी नोंकझोंक तो हर रिश्ते में होती है। उसके बिना तो हर रिश्ता अधूरा होता है। कितनी अंडरस्टैंडिंग थी ना दोनों के बीच, और भरोसा भी!

अब देव लखनऊ से गाजियाबाद जा चुका था और आरती कानपुर से नोएडा। एक बार देव किसी काम से नोएडा आया। 4 दिन दोनों ने साथ में ही बिताए ।

एक शाम आरती का हाथ अपने हाथ में ले कर देव बोला, "पता नहीं क्यों आरती, आज तुमसे सब कुछ कह देने का मन कर रहा है। आरती, पता है मैं अपनी ज़िंदगी में बहुत कुछ करना चाहता था। मुझे वो सब कुछ पाना है जिसके मैंने और मेरे घर वालों ने सपने देखे हैं। घर, गाड़ी ,पैसा, रूतबा, लक्ज़री, सब कुछ। बस फर्क महज़ इतना है कि पहले सिर्फ यह सब मेरे सपने थे और अब मेरा सपना सिर्फ तुम हो। यह सब मुझे तब चाहिए जब तुम मेरे साथ होगी। अगर तुम साथ नहीं हो तो मैं मर जाऊंगा और तुम्हारे साथ मुझे इन सब की कोई जरूरत नहीं होगी।"                   

उसकी आँखें गीली होने लगी थी।

"तुम परेशान मत हो ,मैं कहीं नहीं जाऊंगी पर वादा करो कि तुम कभी भी कुछ भी गलत नहीं करोगे। ना अपने साथ और ना ही किसी और के साथ।"

"प्रॉमिस........ कभी नहीं।"

"देव! मुझे भी कुछ कहना है।"

"हाँ! बोलो ना," देव ने आरती के कंधे पर अपना सिर रखते हुए कहा।

"मुझ पर केवल तुम्हारा हक है। अपने जीते जी मैं कभी भी किसी और को खुद को छूने भी नहीं दूंगी। आज तुमसे वादा है मेरा।"

"अरे! क्या हुआ आरती? मुझे पता है, आई लव यू जान! तुम्हें क्या हुआ?" वो चौंकते हुए बोला।

"कुछ नहीं! बस मन हुआ तो कह दिया," वो बोली।

नहीं जानते थे दोनों कि आखरी मुलाकात है यह उनकी ।

"ना जाने क्यों, आज जाने का मन नहीं हो रहा," वो मायूस था।

"हाँ देव, तो मत जाओ ना! पता नहीं क्यों, आज तुम्हें जाने देने का मन ही नहीं कर रहा। इतनी तकलीफ तो कभी नहीं हुई," उसका मन भारी था।

"काम ना होता तो ना जाता आरती। जाना पड़ेगा।"

आज दोनों की ही आँखों से ही आँसू बरस रहे थे।

दोनों ही अपने घर वालों को बता चुके थे और उनकी सगाई होने वाली थी। देव की जॉब लग चुकी थी और 5 महीने के अंदर ही शादी भी होनी थी। आरती घर आ चुकी थी, बस देव का आना बाकी था उसके आने में एक ही दिन था कि कुछ ऐसा हुआ जिसके बाद उसके जीने की सारी वजहें ही खत्म हो गयीं।

अपनी एक सहेली के बुलाने पर आरती उसके घर गई। वहाँ पर सहेली के दोनों दोस्त पहले से ही मौजूद थे। ये वही लोग थे जिनको आरती ने एक बार पूरे मोहल्ले के सामने बेइज्जत किया था। वो लोग एक लड़की के साथ बदतमीजी कर रहे थे और इसीलिए आरती ने उन लोगों को उन्हीं के घर पर जाकर सबके सामने डांटा था। इसी का बदला लेने के लिए वो यहाँ मौजूद थे।

"तुम लोग यहाँ?" जैसे ही आरती घर के अंदर गई, उन लोगों को वहां देखकर भौंचक्की रह गई। उसे गुस्सा आ रहा था। वो वहाँ से जाने को हुई तभी उन लोगों ने पीछे से उसे पकड़ लिया। वह किसी तरह उनके चंगुल से खुद को छुड़ाकर बचाव कर रही थी। इस हाथापाई में वह लहूलुहान भी होती गई पर उसने हिम्मत नहीं हारी। अपनी आबरु पर संकट आते देख किसी तरह अपने आप को उसने कमरे में बंद कर लिया। अंदर बैठी वो रोती रही। बाहर उनकी हंसी, उनकी गंदी बातें सुनकर काँप रही थी वो।खुद को बचाने की काफी कोशिशें करने के बाद, जब उसे लगा कि अब ज़्यादा देर तक वह खुद को नहीं बचा पाएगी, तब उसने कमरा खोला।

वो दोनों हंस रहे थे। अपनी तरफ खींचने के लिए जैसे ही उन्होंने अपना हाथ बढ़ाया, उनकी नज़र उसके पेट की तरफ गई देखा तो उसने खुद को चाकू मार लिया था।

चाकू पेट में धंसा हुआ थी। कलाई भी कटी हुई थी। यह सब देख कर वह लोग वहाँ से भाग गए। आरती हिम्मत करके फोन की तरफ गई। देव को एक आखिरी कॉल लगाया।

"देव तुमसे किया हुआ वादा और अपनी ज़िद पूरी करने की खातिर, तुमसे किया हुआ दूसरा वादा तोड़ दिया मैंने। अब जिंदगी भर तुम्हारा साथ नहीं निभा पाऊंगी मैं," वो काँपते और कराहते हुए बोली। देव से दूर जाने का गम उसकी आँखों से आँसू की शक्ल में बह रहा था ।

"आरती! क्या हुआ तुम्हें जान? कहाँ हो? क्या, हुआ क्या है? बताओ मुझे!"

वो परेशान हो गया। उसकी आँखों से आँसू झरने में बहते पानी के समान बहने लगे।

"देव, अपने जीते जी मैंने खुद को किसी और को छूने नहीं दिया। तुम्हारा साथ बीच में ही छोड़ कर जा रही हूँ। बहुत प्यार करती हूँ तुमसे और हमेशा करती रहूँगी। कसम है तुम्हें मेरी, खुद को उतना ही प्यार करना, जितना मैं तुम्हें करती हूँ।"

रो रही थी वो। धीरे-धीरे उसकी सांसें तेज़ होने लगीं।

"आरती, कुछ नहीं होगा तुम्हें। मैं तुम्हारे पास आ रहा हूँ। आरती, इतने साल हम दूर रहे, जब एक होने का समय आया, जब.....जब हमें पास आना था... तो तुम मुझ से इतनी दूर नहीं जा सकती। आरु......... मैं क्या करूँगा, मैं तो मर जाऊँगा। मत जाओ ना कहीं। बोलो ना...... कुछ तो बोलो।"

देव पागल सा हो गया था। ऑफिस से पैदल ही भागता हुआ स्टेशन की ओर आ रहा था ।

"आरू..........आरू.......! आरती चुप क्यों हो बोलो ना!"

वह चीख रहा था। मगर इधर से कोई आवाज़ नहीं जा रही थी। आरती फोन खुला छोड़ कर सो गई थी। जैसा कि यह लोग अक्सर करते थे, बस फ़र्क सिर्फ़ इतना था कि हर बार जागते भी थे। इस बार आरती कभी नहीं जागेगी।

इतनी ज़िंदादिल, खुशमिज़ाज़ लड़की ने खुदकुशी कर ली थी। दूसरों को खुश रहने और जीतने की सीख देने वाली आरती ही जिंदगी से हार गई थी।

देव को इस सदमे से उबरने में कितना समय लगा, कोई नहीं जानता। वह तो अभी भी इसी आस में था कि आरती आएगी और उसके गले से लग जाएगी। खुद को संभालने के बाद उसने सबसे पहले एक बच्चा गोद लिया और उसका नाम रखा 'आरव'। वही नाम जो आरती ने सोचा था ।

आरती के जाने के बाद देव ने उसकी डायरी उठाई। आखिरी कविता आधी लिखी हुई थी, वही जो आरती चाहती थी कि देव पूरी करे। ना जाने क्या सोचकर उसने पेन उठाया और लिखने बैठ गया।

"जब साथ हो तुम अपने, घबराने की क्या बात है,
इस जहां में सबसे खूबसूरत, बस तुम्हारा साथ है।
मत जाना दूर कभी, तुमको दिल में छुपा कर रखते हैं।
सब कहना पर कभी मत कहना,
अच्छा तो हम चलते हैं।"

"मुझे मना कर के खुद ही कह गई, अच्छा तो हम चलते हैं। क्यों चली गई मुझे छोड़कर? 10 साल बाद आज भी, एक भी दिन ऐसा नहीं जाता, जब तुम्हारे लौटने का इंतज़ार ना करूं। आज वह सब कुछ है मेरे पास, जिसके सपने देखते थे हम, पर जिसके बिना कुछ नहीं, वही नहीं है। इतनी शिद्दत से तो नहीं मांगा था ना यह सब, तो मुझे यह सब क्यों मिला, तुम क्यों नहीं मिली आरती? क्यों भगवान ने दूर कर दिया हमें? सिर्फ तुम्हारी कसम और हमारे बेटे के खातिर जी रहा हूं मैं आरती, वर्ना मैं अभी तुम्हारे पास आ जाऊँ।

देव फूट फूट कर रोने लगा ।

"पापा ......पापा.....!"  आरव तेज कदमों से कमरे की तरफ आ रहा था।

"ओह पापा! मम्मी से सीक्रेट बातें हो रही हैं?"

अपने आंसू पोंछकर उसकी मासूम बातों पर मुस्कुरा रहा था देव।

"पापा , मुझे कुछ कहना है।"

"कहो बेटा!"

"मत जाना दूल कभी तुमको दिल में छिपा कल लखते हैं,
छब कहना पल कभी मत कहना, अच्छा तो हम चलते हैं।"

देव की आँखों में आँसू भर आए। उसने आरव को गले से लगा लिया। आरती की तस्वीर यह सब देख कर मानो मुस्कुरा सी रही थी। तीनों एक साथ एक ही कमरे में थे। एक कंप्लीट, हैप्पी फैमिली।

आरती, देव और आरव।

दरअसल आरती देव को छोड़कर कहीं गई ही नहीं थी। वह दोनों आज भी साथ थे, अपने बेटे के नाम में, जो दोनों ने बड़े प्यार से रखा था।

आरव।

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