Saturday 9 September 2017

रूह

एक बार रूह आईने के सामने बैठी और रो पड़ी,
रोते रोते अपने जिस्म से सवाल करने लगी और कहने लगी..... 

तेरी नज़रों से गिरी तो कंहाँ जाउंगी ?
टूटे फूल की पत्तियों से बिखर जाउंगी।

तनहा अश्क बहते रहेंगे तमाम उम्र,
मैं खुद में सिमट कर क्या पाऊँगी।

बस भर्म रहने देता रिश्तों का मुझमे,
अब भर्म टूट गया अब में किसे अपनाउंगी।

ठोकर ऐसी लगी दिल को आवाज़ न हुई,
सोच रही हूँ अब इस दर्द के साथ ही जाउंगी।

ऐसा तोडा है तूने मुझको तिनके तिनके हूँ,
आँखों के आंसू अब किसी को दिखा न पाऊँगी।

तू कभी समझ न सकेगी दलील मेरे दिल की,
मुजरिम है तू मेरा, बनी लकीर मेरे दिल की।
   
तेरी नज़रों से गिरी तो कंहाँ जाउंगी ?
टूटे फूल की पत्तियों से बिखर जाउंगी।

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