Monday 23 October 2017

*गुलाबी पेंसिल पार्ट -4*

"कर गए वादा वो ख्वाबों में मिलने का मुझसे,
बस इसी खुशी में नींद ना आई तमाम रात।"

शनिवार शाम को मिलना था पर कमबख़्त जुम्मे की रात आँखों ही आँखों में कट गई। सुबह 7 बजे उसका व्हाट्सएप्प आया।

"गुड़ मॉर्निंग साहिल।"

"गुड़ मोर्निंग सनशाइन," मैंने जल्दी से जवाब दिया। छुट्टी के दिन उसका सात बजे उठ जाना, ये इशारा था कि आग दोनों तरफ बराबर लगी हुई थी। तभी उसका कॉल आ गया। उसकी आवाज़ में एक अजब सा नशा था। "क्या साहिल साहब, लगता है नींद नहीं आई?"

मेरे दिल के किसी कोने से आवाज़ आयी, "जुनूं नहीं मुझे कि मैं जागूं तमाम रात,
पर तेरा खयाल जगाए तो क्या करूँ?"

पर मैंने ये बात उससे कही नहीं, क्योंकि ज़्यादा प्यार और बेचैनी दिखाना नए रिश्ते की सेहत के लिए हानिकारक होता है। मैंने ऐसे ही बहाना बनाते हुए कहा "अरे रूममेट को जॉगिंग का नया नया शोक चढ़ा है, तो उसी का डोर खोलने उठा था।"

"तुम कबसे जॉगिंग स्टार्ट करोगे मोटू," उसने चहकते हुए पूछा।

"एक्सक्यूज़ मी मोहतरमा! फ़ॉर योर काइंड इन्फॉर्मेशन मेरा बॉडी मास इंडेक्स 23 है और मोटों की कैटेगरी 25 से स्टार्ट होती है। और इससे कम करके भी क्या करूँगा? औरों के लिए भी तो थोड़ा स्कोप छोड़ दूँ, वरना सब की सब मेरी ही दीवानी हो गयीं तो बाकी लड़कों का क्या होगा?"

मेरे जवाब पर वो हँसते हुए बोली, "इंजीनियर साहब हर बात पर टेक्निकेलिटि में मत घुस जाया करो," उसकी हँसी ऐसी थी जैसे मंदिर में घंटियाँ बज रही हो।

"चलो सी यू एट 8 पीएम शार्प और लेट मत करना वरना जो भी मिला 8 बजे उसके साथ चली जाऊँगी मैं। बाय फ़ॉर नाउ।" ये कहते हुए उसने फ़ोन रख दिया।
वो मेरी लेट लतीफी वाली आदत को जानती थी। मैं ऑफिस भी अक्सर लेट पहुँचता था। वो एचआर डिपार्टमेंट में थी। लेट कमिंग्स और सैलरी डिडक्शन्स वही देखती थी। और मेरी यही बुरी आदत शुरू में उससे मिलने का सबक बनी, कई बार उसने मुझे वार्न करने को बुलाया था। पर उसके वार्न पर मेरा चार्म भारी पड़ गया। नौकरी जाते जाते छोकरी झोली में आ गयी।

**

"भाई आज शाम के लिए अपनी कार दे दे प्लीज।" मैंने ऑलमोस्ट गिड़गिड़ाते हुए रूममेट से कहा।
"अबे तुझे गाड़ी क्यों चाहिए बे? तू डीटीसी में पास बनवा कर धक्के खाने वाला आदमी, तुझे कार का क्या काम आ गया? पूरे वीकेंड तो तू घर में पड़ा किताबों और लैपटॉप में घुसा रहता है," रूममेट ने हैरानी से पूछा।

फिर एक सेकंड रुक कर बोला, "गर्लफ्रैंड भी नहीं....एक मिनट..डेट पर जा रहा है भाई?"
मैंने कुछ कहा नहीं, बस मुस्कुरा दिया।

मेरी मुस्कुराहट को मेरी हाँ जानकर वो बड़े जोश में बोला, "भाई तू ये ले चाबी, आज तूने दिल खुश कर दिया। नहीं तो मुझे लगा था कि तेरी शादी की बिरयानी खाने की तमन्ना दिल में ही लिए तेरा यार दुनिया से रुखसत हो जाएगा। अच्छा ये बता क्या करती है भाभी हमारी?"

"अरे भाई पहली बार मिल रहा हूँ डिनर पर नॉर्मली, ऑफिस में साथ है और तू इतने ख़्वाब मत पाल अभी से," मैंने हँसते हुए कहा।

"भाई ये लड़की कुछ ख़ास होगी वैसे, तुझे 5 साल से जनता हूँ, पहली बार किसी लड़की के साथ डेट पर जा रहा है तू। वर्ना मुझे तो कई मर्तबा शक़ होता था तुझ पर,  इसीलिए रात को अपना डोर लॉक करके सोता था," उसकी बात पर मैं खिलखिला कर हँस पड़ा, डोर लॉक वाला कुछ ज़्यादा ही हो गया था।

ये दोस्त भी अजब किस्म के प्राणी होते हैं। तुमसे ज़्यादा एक्ससितमेंट तो इनको होती है। मैं वैसे तो बस में सफ़र करना ही पसंद करता था। ओला/ऊबर का ख्याल भी आया था दिल में पर अपनी कार हो तो बेहतर रहता है। मैंने उसकी गाड़ी कभी नहीं मांगी थी पर आज कुछ खास दिन था मेरे लिए। और इस बात का अहसास उसे भी था, तभी मान गया वर्ना आप उसकी किडनी बेचकर आईफ़ोन खरीद लो चाहे ख़ुशी ख़ुशी दे देगा, पर कार को हाथ भी ना लगाने दे किसी को।

"भाई पर एक बात का ख्याल रखना, परसों ही सर्विस कराई है, सीट्स भीगें ना बस, बरसात का मौसम है," दोस्त कार की चाबी देते हुआ बोला।

मैं बस अब बेसब्री से शाम का इंतज़ार करने लगा।

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