Tuesday 10 October 2017

चढ़ गए हम भी सूली पर

"ये भी पसंद नहीं आया। ना जाने कितने नाटक हैं इस लड़की के। अरे बूढ़ी हो जाएगी तब करेगी क्या शादी? कोई पसंद हो तो वो बता दे पर नहीं इन्हें तो माँ-बाप को परेशान करके ही सुख मिलता है," हमारी बस एक ‘ना’ ने प्रवचनों की झड़ी लगा दी। ये तो अब हर रोज़ की बात हो गई थी।

दरअसल, हम हैं एक मिडिल-क्लास हिन्दुस्तानी लड़की, जिसकी अब उम्र हो गई है शादी की। आजकल के हर यंगस्टर की तरह हम भी चाहते हैं लाइफ़ को थोड़ा और एन्जॉय करना। अब हमारे पेरेंट्स को कौन समझाए ये बात, वो तो हर रोज़ बस एक नया रिश्ता ले आते हैं। आज जो लड़का दिखाया वो खाता-कमाता तो सही था लेकिन हमें उसकी सूरत पसंद नहीं आई।

असल बात बताएँ? हमारे सिर पर सवार है लव मैरिज का भूत। हालाँकि घरवालों की तरफ़ से कोई परेशानी नहीं है। वो तो आगे बढ़-बढ़कर पूछते हैं, "बता दे कोई हो तो, कर दें शादी; छुटकारा मिले।"

अब उन्हें कौन समझाए कि लव मैरिज के लिए कोई होना भी तो चाहिए। हम हैं कि हमें कोई मिलता ही नहीं। जीवन के इस मोड़ पर ‘अक्षय कुमार’ की कही एक बात अक्सर याद आ जाती है, "जो हमें चाहिए उसे कोई और चाहिए और जिसे हम चाहिए, वो किसे चाहिए?"

कभी-कभी ऐसा लगता है कि ज़िन्दगी का सार छुपा है फिल्मों में।

हमने सोचा क्यों ना घरवालों के लिए जो खुन्नस थी उसे जिम में पसीने के साथ बहा दिया जाए। क्या पता इसी बहाने हम कुछ आकर्षक हो जाएँ और हमारे प्रिंस चार्मिंग की नज़र हम पर पड़ जाए। संयोग ही था कि जिम में वर्जिश करते हुए हमारा सपनों का राजकुमार हमारे सामने आ खड़ा हुआ। उसके कसरती बदन को हम निहार ही रहे थे कि यहाँ भी माँ का फ़ोन आ गया। घर जल्दी आने का ऑर्डर दे डाला। किसी लड़के से मिलने जाना था। माँ से तने बैठे हम आज तो इस ‘सलमान’ के फैन से बात किए बिना घर जाने वाले नहीं थे।

"एक्सक्यूज़ मी!" हमारे बोलने पर उसने जो लुक दिया, भगवान का शुक्र था कि हमारी दिल की धड़कनें क़ाबू हो गईं। वर्ना पहले ही दिन उन्हें हमें बाँहों में उठा कर अस्पताल ले जाना पड़ता। शुरुआती झटके से उभरते ही हमने पूछा, "क्या आप यहाँ इंस्ट्रक्टर हैं?"

उन्होंने शर्मा कर जवाब दिया, "नहीं-नहीं! मैंने तो अभी दो महीने पहले ही जॉइन किया है।"

उनके अंदाज़ से लग रहा था कि वो भी हम में दिलचस्पी ले रहे हैं और ये पहली दफ़ा नहीं जब वो हमें देख रहे हैं। छुप-छुपकर ताकने का सिलसिला यहाँ से भी चालू था।

ख़ैर, इंट्रोडक्शन के बाद जैसे ही हम बात आगे बढ़ाने वाले थे, कि माँ का फिर से फ़ोन आ गया। अपनी क़िस्मत को कोसते हुए फ़टाफ़ट जिम से बाहर आ गए।

जाने किससे मिलवाने वाले थे आज घरवाले। माँ के कहे मुताबिक़ तैयार तो हो गए पर किसी भी ऊल-जलूल इंसान से मिलने का हमारा बिल्कुल भी मूड नहीं था। जाना तो था ही, सो पहुँच गए रेस्ट्रॉन्ट में।

अब जाने कौन-सी मिल्कियत का मालिक था, आधे घण्टे से ऊपर हो गया, अभी तक जनाब ने दर्शन नहीं दिए थे। उसके इंतज़ार में हम चार कप चाय पी चुके थे। तभी सामने से सूट-बूट में चश्मा लगाए एक नौजवान हमारी टेबल की तरफ़ बढ़ने लगा। हम आँखें बंद करके भगवान से प्रार्थना करने लगे कि ये वो लड़का ना हो। यक़ीन मानिए इतनी शिद्दत से फ़रियाद हमने दसवीं बोर्ड के रिज़ल्ट के वक़्त भी नहीं की होगी। अब मामला ज़िन्दगी और मौत का था भाई!

जब वो शख़्स हमारे बग़ल वाले टेबल पर बैठा तो इतनी राहत मिली जितनी कभी मेट्रो में सीट मिलने पर भी नहीं मिली होगी। तभी हमें कंधे पर एक थपथपाहट महसूस हुई।

"श्रुति?" किसी ने पीछे से कहा।

हमने पीछे मुड़कर देखा और हम हामी में सिर हिलाने से ज़्यादा और कुछ ना कर पाए। ऐसा लगा जैसे हमारे सपनों का जहां हमारे सामने खड़ा हो। जिम में देखा वो बांका नौजवान हमारे रूबरू था।

"अरे! आप यहाँ?" एक पल के लिए तो हमें लगा कि वो हमारा पीछा करते हुए यहाँ तक आए हैं पर फिर दिमाग़ ने हमें असलियत का एहसास कराया कि हम कोई हूर की परी नहीं जो कोई इस तरह हमारे पीछे आए।

"हाँ, मैं! आप ही से मिलने आया हूँ पर आपकी नज़रें तो कहीं और ही भाग रही हैं," उन्होंने मुस्कुराते हुए कहा।

"हम तो यहाँ अपनी शादी के लिए लड़का देखने आए थे," हम अपनी सफाई देने ही लगे थे कि वो शरारत भरी आँखों से झाँकतेे हुए बोले, "जानता हूँ।"

अब आगे क्या हुआ आपको क्या बताएँ। तीन महीने बीत चुके हैं इस बात को। दो दिन बाद हमारी शादी है। उस दिन जिसने कंधा थपथपाया था वो अब हमारे होने वाले पतिदेव हैं। उन्हें देखते ही हमारी तो सिट्टी-पिट्टी गुम हो गई थी। सूट-बूट में उनका कसरती बदन और भी कहर ढा रहा था। हम तो उन पर पहले से ही फ़िदा थे, उन्होंने बताया कि हम भी उन्हें तस्वीर और बायो-डेटा देखते ही पसन्द आ गए थे। और तो और उन्होंने जिम भी हमसे जान-पहचान करने के लिए ही जॉइन किया था, लेकिन हम तो अपनी ही दुनिया मे खोए रहते थे। ख़ैर, जो हुआ अच्छे के लिए ही हुआ। सबसे बड़ी बात ये थी उनका नेचर भी वैसा ही था जैसा हमें चाहिए था। खुले विचार, फ्रेंडली अंदाज़, उम्दा सोच, उनकी इन सब बातों ने हमें उनका और क़ायल कर दिया था।

हमारा लव मैरिज करने का सपना दो दिन बाद पूरा होने वाला था। बस एक बात हमें आज तक खलती है। क्या ये सच में लव मैरिज है? हमें तो अरेंज्ड ज़्यादा लग रही है। उन्हें हमारे पेरेंट्स ने ही तो अरेंज किया था उन्हें हमारी लाईफ़ में। ख़ैर, हमें क्या! लव तो हमें हो ही गया था उनसे, अब मैरिज करने में भी कोई हर्ज़ नहीं था।

तो बस, चढ़ गए हम भी सूली पर।

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