Wednesday, 4 September 2019

लव एवं लस्ट के बीच क्या अंतर है ?

Love - आज के समय में किसी का भी प्यार में पड़ना स्वाभाविक सी बात है। प्यार हमें कहीं भी, कभी भी, किसी से भी हो सकता है। इसके लिए ये बिल्कुल भी जरूरी नहीं है कि प्यार सिर्फ लड़कों को लड़कियों से और लड़कियों को लड़कों से होता है।

जब भी हमें किसी से प्यार होता है तो हम उस समय सिर्फ उसकी अच्छाइयों को देख रहे होते हैं। उसके बारे में कुछ निगेटिव बातें पता ही हमारा प्यार ना जाने कहां छुमन्तर हो जाता है। लेकिन कुछ बातें ऐसी भी हैं कि जब हम किसी के साथ प्यार में होते हैं तो वो सब करना खुद बा खुद अच्छा लगने लगता है। जैसे कि-

1- मोबाइल की घंटी बजने या मिस कॉल आने पर ऐसा लगे उसने ही कॉल किया होगा।

2- फोन पर घंटों बातें करने के बावजूद दिल न माने और बातें करने की इच्छा बनी रहे।

3- रोमांटिक फिल्म में हीरो की जगह स्वयं को व हीरोइन की जगह उसके होने की कल्पना करने लगें।

4- जब वह किसी लड़के/ लड़की के साथ बात करे तो आपको ईर्ष्या होने लगे। उस लड़के/ लड़की का गला घोंट देने की इच्छा होने लगे।

5- आपके पास कैमरा होने पर उसकी ढेर सारी तस्वीरें उतारने का दिल करे।

6- अपने कम्प्यूटर के पासवर्ड में उसके नाम का कोड रखें।

7- गजलें और दर्द भरे गीत आप बड़े ध्यान से सुनने लगें। दूसरों को भी ऐसे गीत सुनने की सलाह देने लगें। गजल, शेरो-शायरी पर लंबा लेक्चर देने लगें। मानो उसके बारे में आपको बड़ा नॉलेज है।

8- आपको अपना डेट ऑफ बर्थ भले याद नहीं हो लेकिन उसके डेट ऑफ बर्थ से लेकर उसके पूरे फैमिली का बायोडाटा जबानी याद हो।

Lust - इसमें हम किसी के साथ प्यार में हो भी सकते हैं और नहीं भी। ऐसा हमारे साथ तब होता है जब किसी ऐसे इंसान को देख लें जिसकी शारीरिक बनावट ऐसी हो कि वो किसी को भी अपने वस में कर ले। ऐसे में हमें उस शरीर को भोगने की इच्छा होने लगती है ऐसा लगता है कि जैसे मुझे ये मिल जाए तो मैं दुनिया जीत लूं। ऐसा किसी के भी साथ हो सकता है चाहे वो लड़की हो या लड़का। जब हम जवानी में कदम रखते हैं तो ऐसा होना स्वाभाविक सी बात है। हर किसी के साथ कभी ना कभी हुआ होता है। ऐसे में अगर हम उस शख्स को पा नहीं सकते तो उसे याद करके तरह तरह की एक्टिविटी करने लगते हैं। और अगर उस शख्स को पा लेते हैं तो कुछ समय बाद जी भरते ही ये सब खत्म हो जाता है।

लव के साथ लस्ट शब्द ज्यादातर सुनने को मिलता है। इसका कारण यह है कि शुरू में यह पता नहीं चल पाता है कि कोई लव के कारण आपके साथ रिलेशनशिप में है या लस्ट के कारण। लेकिन जब पता चलता है तब इमोशनल ट्रामा से गुजरने की स्थिति आ जाती है। रिलेशनशिप के शुरूआत में यह पता लगाना काफी मुश्किल होता है कि वास्तव में यह लव है या लस्ट। लेकिन जैसे जैसे समय बीतता है हमें खुद ही इस बात का एहसास हो जाता है कि हमारा पार्टनर वास्तव में हमसे सिर्फ सेक्स चाहता है। इसको भी पहचानने के कई तरीके हैं जैसे कि-

1- शारीरिक सुंदरता देखकर पीछे भागना लस्ट है ।

2- लस्ट होने पर रिलेशनशिप जल्दी खत्म हो जाती है ।

3- लस्ट में कोई कमिटमेंट नहीं होता ।

4- लस्ट होने पर आपका पार्टनर सब कुछ छिपाएगा ।

क्या कभी आपने अपने दिल की धुन सुनी है?

आपने इस प्रश्न में ये स्पष्ट नहीं किया है कि आप कौन सी दिल की धुन सुनने की बात कह रहे हैं। वो जो स्टेथोस्कोप से सुनते हैं या वो जो हम तब सुनते हैं जब हम कुछ करना चाहते हैं लेकिन सुनिश्चित नहीं कर पाते कि क्या करना है। जब आपने पूंछ ही लिया है तो चलिए आते हैं आपके प्रश्न पर और मेरे जबाब पर।

मैंने आज तक कभी भी अपने खुद के दिल की धुन को स्टेथोस्कोप की मदद से नहीं सुना है। लेकिन हां एक दो बार अपने दोस्तों के दिल की धुन को जरूर सुना है।

अब अगर आप उस दिल की धुन की बात कर रहे हैं जिसके बारे में अक्सर लोग कहते रहते हैं कि अपने दिल की सुनो। तो ऐसा मैंने कई बार किया है। इसके लिए मैं आपको अपना खुद का एक किस्सा सुनाऊंगा।

ये बात तब की है जब मैंने 9वीं क्लास में एडमिशन लिया था। मुश्किल से 4–5 दिन ही हुए होते क्लास जाते। कि अचानक से एक दिन मैं बीमार पड़ गया। जब आंख खुली तो खुद को हास्पिटल के बेड पर पाया। कई तरह की जांचें हुईं तो पता चला कि मेरे दिमाग का 5 सेमी. हिस्सा सूख चुका है उसमें ब्लड सप्लाई नहीं है। बहुत लम्बे समय तक इसका इलाज भी चला लेकिन कहीं से कोई फायदा भी नहीं हुआ था। डाक्टर ने मुझे कुछ भी करने से मना किया था जैसे कि मैं ना तो कहीं खेलने जा सकता था ना पढ़ सकता, ना ही टीवी देख सकता था। उसके बावजूद भी मैं चोरी छुपे थोड़ी बहुत देर पढ़ लिया करता था।

इतना सब हो जाने के बाद जब मैं अन्त में फिर से घर वालों के साथ डाक्टर के पास गया। तो डाक्टर का एक ही जवाब था कि मेरे पास बहुत कम समय है, मैं जितना जी रहा हूं बहुत है। मैं जो करना चाहूं मुझे करने दिया जाए। बस ये आदेश दे दिया कि मुझे किताबों से दूर रखा जाये वरना मेरा अन्त समय और भी नजदीक हो सकता है।

घर आने के बाद जब हर किसी ने मुझसे यही कहा कि अब पढ़ाई छोड़ दो। तो मैंने भी यही जिद पकड़ ली कि नहीं, मुझे तो पढ़ना है। और फिर घरवालों ने भी मेरी जिद को मान लिया। मेरा एडमिशन करा दिया गया फिर से। लेकिन मैं स्कूल नहीं जाता था। घर पर रहकर ही पढ़ता, सिर्फ परीक्षा देने ही जाता।

अब आप सोच रहे होंगे कि मैंने इसमें अपने दिल की धुन को कहां सुना। वो दिल की धुन मेरी जिद ही थी।

कहां जिसके पास बहुत कम समय था, वो इन्सान आज भी जिन्दा है। और एक डॉक्टर बनने की ओर अग्रसर है।

धन्यवाद

Tuesday, 3 September 2019

क्या आपने कभी किसी से प्यार किया है, आपके प्यार की शुरुआत कहां से हुई ?

शायद ही कोई ऐसा हो जिसे कभी प्यार हुआ ना हो वरना आज के दौर में हर इंसान इस मनचाही बीमारी की तरफ बढ़ता जा रहा है। कुछ को तो इसका मतलब भी नहीं पता फिर भी वो लाइन में लगे हुए हैं।

हां औरों की तरह ही मुझे भी प्यार हुआ था लेकिन वो प्यार कुछ मायनों में बाकी लोगों के प्यार से अलग था। क्योंकि ये प्यार उस शख्स से हुआ था जिसे मैंने कभी देखा भी नहीं था ना ही कभी बात की थी यहां तक की उसके बारे में कुछ जानता भी नहीं था।

तब मैं १२वीं क्लास में था और वो १०वीं क्लास में, जब मेरे बड़े भाई ने मुझे उसके बारे में बताया था।तब मुझे पहली बार उसका नाम पता चला था।भाई से उसकी तारीफ सुनके मुझे भी अच्छा लगा, दिल में कई अरमान जागने लगे । क्योंकि वो कोई और नहीं, मेरे भाई की गर्लफ्रेंड की बहन थी, तो उसका मोबाइल नंबर ढूंढने में भी कोई परेशानी नहीं हुई।

मुझे मेरी मंजिल की ओर ले जाने में मेरा साथ BSNL की सिम ने भी दिया क्योंकि मैं लखनऊ में रहता था तो रोमिंग में होने की वजह से उसके सारे मैसेज फ्री थे। मुझे शायरी लिखने का बचपन से ही शौक था। ज्यादा अच्छी तो नहीं लेकिन टूटी फूटी लिख लेता था। ऐसे ही जब मैं कोई शायरी लिखता तो उसे मैसेज के जरिए अपने सारे कान्टैक्ट नम्बर पर भेज देता। जिसमे से एक नम्बर उसका भी था।

ऐसे ही कई दिन गुजर गए मैंने तब तक उससे बात भी नहीं की थी। फिर एक दिन उसकी बहन के माध्यम से पता चला कि वो मुझसे बात करना चाहती है। मैंने भी हां बोल दिया बात करने को। फिर जब उसकी फोन काल आई तो पहले तो हम दोनों में नार्मल बातें ही होती रहीं।

फिर बात करते करते मैंने उससे पूंछ ही लिया कि तुम किसी से प्यार करते हो। तो उसका जवाब सुनकर मुझे भी कुछ समय तक यकीन नहीं हो रहा था क्योंकि उसने बोला था कि मैं तुमसे प्यार करती हूं तो मुझे किसी और की क्या जरूरत, मेरा प्यार तो तुम ही हो।

उसके २-३ महीने बाद मैं पहली बार उससे मिला था जिसमें मिलने में भाई ने मदद की थी क्योंकि अभी तक मैंने उसको देखा नहीं था जिसकी वजह से मैं तो उसको पहचानने की हालत में भी नहीं था।

जब उससे मिला तो उसके साथ उसकी बहन भी थी जिससे अक्सर मेरी बात हो जाया करती थी। लेकिन मिला उनसे भी नहीं था। जाते ही मैंने सबसे पहले उन दोनों से उनका नाम पूंछ कर पता किया।तब जाकर कहीं पता चला कि मैं जिससे प्यार करता हूं वो इन्हीं में से एक है।

और इस तरह से मेरी भी प्यार की गाड़ी आगे बढ़ चुकी थी।

धन्यवाद !

मछली अंडे देती है या बच्चे ?

मछली दोनों दे सकती है अंडे भी और बच्चे भी। ये निर्भर करता है कि मछली किस प्रकार की है और कहां पाई जाती है।

सामान्यतः मछली दो प्रकार की होती है-

१-: Chondrichthyes fishes -

ये मछली exclusively marine water में पायी जाती है और बच्चे देती है।

Ex. Scoliodon, Shark, Pristis, Trygon, Torpedo etc.

२-: Osteichthyes Fishes -

ये मछली दोनों जगह Fresh water और marine water में पायी जाती है और अण्डे देती है।

Ex. Rohu, Catla, Clarias, Hippocampus, Exocoetus etc.

धन्यवाद !

क्या प्यार एक एहसास है या एक पसंद है?

मेरे अनुसार,

प्यार में एहसास जैसी कोई चीज होती ही नहीं है । अगर हमें कुछ पसंद आता है तो हम उसे प्यार का नाम दे देते हैं फिर चाहे वो कोई इन्सान हो, वस्तु हो, या जानवर हो।

जब हम उसे पहली बार देखते हैं तो हमें उसकी खूबियां नजर आती हैं। सिर्फ उसकी खासियत को देखने लगते हैं। उसके पाज़िटिव प्वाइंटस ढूंढते ढूंढते उसमें इतना खो जाते हैं कि उसके निगेटिव प्वाइंटस की हमें याद ही नहीं रहती। और ऐसा करते करते वो चीज हमें पसंद आने लगती है जिसे हम प्यार का नाम देना शुरू कर देते हैं।

अगर प्यार एक एहसास होता तो इसमें हमें एक साथ ही सारे पाज़िटिव और निगेटिव पहलुओं का पता चल जाता। एहसास अगर होता तो उसका दोनों तरफ होना जरूरी था लेकिन ऐसा सामान्यतः नहीं होता है।

प्यार वही है जो हम पसंद करते हैं जिसे पसंद करते हैं। इसलिए प्यार कभी भी, किसी भी वस्तु, स्थान, मनुष्य,या जानवर से हो सकता है। ऐसा बिल्कुल भी जरूरी नहीं है कि प्यार हमेशा इंसान से ही हो ।

जैसा कि हम सभी लोग अपने चारों तरफ देखते हैं कि आज के समय में हर कोई आशिकी का खेल, खेल रहा है। आज अगर कोई पसंद आ गया, प्यार का नाम दे दिया। कुछ समय बाद कोई और पसंद आ गया उसे भी प्यार का नाम दे दिया। और ऐसा चलता रहता है ना जाने कब तक।

इन सब में एहसास जैसी कोई बात ही नहीं है, बस एक भ्रम है।

धन्यवाद

Friday, 18 May 2018

खोया हुआ सच - राजेंद्र जगोत्ता

एक लीला थी जिस का दिल जानवर के प्रति भी प्यार से पसीज जाता था और दूसरी तरफ सीमा थी, अपनों का दर्द जिस के मर्म को छूता न था. शायद यही वजह थी सीमा के दुख की.

सीमा रसोई के दरवाजे से चिपकी खड़ी रही, लेकिन अपनेआप में खोए हुए उस के पति रमेश ने एक बार भी पीछे मुड़ कर नहीं देखा. बाएं हाथ में फाइलें दबाए वह चुपचाप दरवाजा ठेल कर बाहर निकल गया और धीरेधीरे उस की आंखों से ओझल हो गया.
सीमा के मुंह से एक निश्वास सा निकला, आज चौथा दिन था कि रमेश उस से एक शब्द भी नहीं बोला था. आखिर उपेक्षाभरी इस कड़वी जिंदगी के जहरीले घूंट वह कब तक पिएगी?
अन्यमनस्क सी वह रसोई के कोने में बैठ गई कि तभी पड़ोस की खिड़की से छन कर आती खिलखिलाहट की आवाज ने उसे चौंका दिया. वह दबेपांव खिड़की की ओर बढ़ गई और दरार से आंख लगा कर देखा, लीला का पति सूखे टोस्ट चाय में डुबोडुबो कर खा रहा था और लीला किसी बात पर खिलखिलाते हुए उस की कमीज में बटन टांक रही थी. चाय का आखिरी घूंट भर कर लीला का पति उठा और कमीज पहन कर बड़े प्यार से लीला का कंधा थपथपाता हुआ दफ्तर जाने के लिए बाहर निकल गया.
सीमा के मुंह से एक ठंडी आह निकल गई. कितने खुश हैं ये दोनों… रूखासूखा खा कर भी हंसतेखेलते रहते हैं. लीला का पति कैसे दुलार से उसे देखता हुआ दफ्तर गया है. उसे विश्वास नहीं होता कि यह वही लीला है, जो कुछ वर्षों पहले कालेज में भोंदू कहलाती थी. पढ़ने में फिसड्डी और महाबेवकूफ. न कपड़े पहनने की तमीज थी, न बात करने की. ढीलेढाले कपड़े पहने हर वक्त बेवकूफीभरी हरकतें करती रहती थी.
क्लासरूम से सौ गज दूर भी उसे कोई कुत्ता दिखाई पड़ जाता तो बेंत ले कर उसे मारने दौड़ती. लड़कियां हंस कर कहती थीं कि इस भोंदू से कौन शादी करेगा. तब सीमा ने ख्वाब में भी नहीं सोचा था कि एक दिन यही फूहड़ और भोंदू लीला शादी के बाद उस की पड़ोसिन बन कर आ जाएगी और वह खिड़की की दरार से चोर की तरह झांकती हुई, उसे अपने पति से असीम प्यार पाते हुए देखेगी.
दर्द की एक लहर सीमा के पूरे व्यक्त्तित्व में दौड़ गई और वह अन्यमनस्क सी वापस अपने कमरे में लौट आई.
‘‘सीमा, पानी…’’ तभी अंदर के कमरे से क्षीण सी आवाज आई.
वह उठने को हुई, लेकिन फिर ठिठक कर रुक गई. उस के नथुने फूल गए, ‘अब क्यों बुला रही हो सीमा को?’ वह बड़बड़ाई, ‘बुलाओ न अपने लाड़ले बेटे को, जो तुम्हारी वजह से हर दम मुझे दुत्कारता है और जराजरा सी बात में मुंह टेढ़ा कर लेता है, उंह.’
और प्रतिशोध की एक कुटिल मुसकान उस के चेहरे पर आ गई. अपने दोनों हाथ कमर पर रख कर वह तन कर रमेश की फोटो के सामने खड़ी हो गई, ‘‘ठीक है रमेश, तुम इसलिए मुझ से नाराज हो न, कि मैं ने तुम्हारी मां को टाइम पर खाना और दवाई नहीं दी और उस से जबान चलाई. तो लो यह सीमा का बदला, चौबीसों घंटे तो तुम अपनी मां की चौकीदारी नहीं कर सकते. सीमा सबकुछ सह सकती है, अपनी उपेक्षा नहीं. और धौंस के साथ वह तुम्हारी मां की चाकरी नहीं करेगी.’’
और उस के चेहरे की जहरीली मुसकान एकाएक एक क्रूर हंसी में बदल गई और वह खिलाखिला कर हंस पड़ी, फिर हंसतेहंसते रुक गई. यह अपनी हंसी की आवाज उसे कैसी अजीब सी, खोखली सी लग रही थी, यह उस के अंदर से रोतारोता कौन हंस रहा था? क्या यह उस के अंदर की उपेक्षित नारी अपनी उपेक्षा का बदला लेने की खुशी में हंस रही थी? पर इस बदले का बदला क्या होगा? और उस बदले का बदला…क्या उपेक्षा और बदले का यह क्रम जिंदगीभर चलता रहेगा?
आखिर कब तक वे दोनों एक ही घर की चारदीवारी में एकदूसरे के पास से अजनबियों की तरह गुजरते रहेंगे? कब तक एक ही पलंग की सीमाओं में फंसे वे दोनों, एक ही कालकोठरी में कैद 2 दुश्मन कैदियों की तरह एकदूसरे पर नफरत की फुंकारें फेंकते हुए अपनी अंधेरी रातों में जहर घोलते रहेंगे?
उसे लगा जैसे कमरे की दीवारें घूम रही हों. और वह विचलित सी हो कर धम्म से पलंग पर गिर पड़ी.
थप…थप…थप…खिड़की थपथपाने की आवाज आई और सीमा चौंक कर उठ बैठी. उस के माथे पर बल पड़ गए. वह बड़बड़ाती हुई खिड़की की ओर बढ़ी.
‘‘क्या है?’’ उस ने खिड़की खोल कर रूखे स्वर में पूछा. सामने लीला खड़ी थी, भोंदू लीला, मोटा शरीर, मोटा थुलथुल चेहरा और चेहरे पर बच्चों सी अल्हड़ता.
‘‘दीदी, डेटौल है?’’ उस ने भोलेपन से पूछा, ‘‘बिल्लू को नहलाना है. अगर डेटौल हो तो थोड़ा सा दे दो.’’
‘‘बिल्लू को,’’ सीमा ने नाक सिकोड़ कर पूछा कि तभी उस का कुत्ता बिल्लू भौंभौं करता हुआ खिड़की तक आ गया.
सीमा पीछे को हट गई और बड़बड़ाई, ‘उंह, मरे को पता नहीं मुझ से क्या नफरत है कि देखते ही भूंकता हुआ चढ़ आता है. वैसे भी कितना गंदा रहता है, हर वक्त खुजलाता ही रहता है. और इस भोंदू लीला को क्या हो गया है, कालेज में तो कुत्ते को देखते ही बेंत ले कर दौड़ पड़ती थी, पर इसे ऐसे दुलार करती है जैसे उस का अपना बच्चा हो. बेअक्ल कहीं की.’
अन्यमनस्क सी वह अंदर आई और डेटौल की शीशी ला कर लीला के हाथ में पकड़ा दी. लीला शीशी ले कर बिल्लू को दुलारते हुए मुड़ गई और उस ने घृणा से मुंह फेर कर खिड़की बंद कर ली.
पर भोंदू लीला का चेहरा जैसे खिड़की चीर कर उस की आंखों के सामने नाचने लगा. ‘उंह, अब भी वैसी ही बेवकूफ है, जैसे कालेज में थी. पर एक बात समझ में नहीं आती, इतनी साधारण शक्लसूरत की बेवकूफ व फूहड़ महिला को भी उस का क्लर्क पति ऐसे रखता है जैसे वह बहुत नायाब चीज हो. उस के लिए आएदिन कोई न कोई गिफ्ट लाता रहता है. हर महीने तनख्वाह मिलते ही मूवी दिखाने या घुमाने ले जाता है.’
खिड़की के पार उन के ठहाके गूंजते, तो सीमा हैरान होती और मन ही मन उसे लीला के पति पर गुस्सा भी आता कि आखिर उस फूहड़ लीला में ऐसा क्या है जो वह उस पर दिलोजान से फिदा है. कई बार जब सीमा का पति कईकई दिन उस से नाराज रहता तो उसे उस लीला से रश्क सा होने लगता. एक तरफ वह है जो खूबसूरत और समझदार होते हुए भी पति से उपेक्षित है और दूसरी तरफ यह भोंदू है, जो बदसूरत और बेवकूफ होते हुए भी पति से बेपनाह प्यार पाती है. सीमा के मुंह से अकसर एक ठंडी सांस निकल जाती. अपनाअपना वक्त है. अचार के साथ रोटी खाते हुए भी लीला और उस का पति ठहाके लगाते हैं. जबकि दूसरी ओर उस के घर में सातसात पकवान बनते हैं और वे उन्हें ऐसे खाते हैं जैसे खाना खाना भी एक सजा हो. जब भी वह खिड़की खोलती, उस के अंदर खालीपन का एहसास और गहरा हो जाता और वह अपने दर्द की गहराइयों में डूबने लगती.
‘‘सीमा, दवाई…’’ दूसरे कमरे से क्षीण सी आवाज आई. बीमार सास दवाई मांग रही थी. वह बेखयाली में उठ बैठी, पर द्वेष की एक लहर फिर उस के मन में दौड़ गई. ‘क्या है इस घर में मेरा, जो मैं सब की चाकरी करती रहूं? इतने सालों के बाद भी मैं इस घर में पराई हूं, अजनबी हूं,’ और वह सास की आवाज अनसुनी कर के फिर लेट गई.
तभी खिड़की के पार लीला के जोरजोर से रोने और उस के कुत्ते के कातर स्वर में भूंकने की आवाज आई. उस ने झपट कर खिड़की खोली. लीला के घर के सामने नगरपलिका की गाड़ी खड़ी थी और एक कर्मचारी उस के बिल्लू को घसीट कर गाड़ी में ले जा रहा था.
‘‘इसे मत ले जाओ, मैं तुम्हारे हाथ जोड़ती हूं,’’ लीला रोतेरोते कह रही थी.
लेकिन कर्मचारी ने कुत्ते को नहीं छोड़ा. ‘‘तुम्हारे कुत्ते को खाज है, बीमारी फैलेगी,’’ वह बोला.
‘‘प्लीज मेरे बिल्लू को मत ले जाओ. मैं डाक्टर को दिखा कर इसे ठीक करा दूंगी.’’
‘‘सुनो,’’ गाड़ी के पास खड़ा इंस्पैक्टर रोब से बोला, ‘‘इसे हम ऐसे नहीं छोड़ सकते. नगरपालिका पहुंच कर छुड़ा लाना. 2,000 रुपए जुर्माना देना पड़ेगा.’’
‘‘रुको, रुको, मैं जुर्माना दे दूंगी,’’ कह कर वह पागलों की तरह सीमा के घर की ओर भागी और सीमा को खिड़की के पास खड़ी देख कर गिड़गिड़ाते हुए बोली, ‘‘दीदी, मेरे बिल्लू को बचा लो. मुझे 2,000 रुपए उधार दे दो.’’
‘‘पागल हो गई हो क्या? इस गंदे और बीमार कुत्ते के लिए 2,000 रुपए देना चाहती हो? ले जाने दो, दूसरा कुत्ता पाल लेना,’’ सीमा बोली.
लीला ने एक बार असीम निराशा और वेदना के साथ सीमा की ओर देखा. उस की आंखों से आंसुओं की धारा बह रही थी. सहसा उस की आंखें अपने हाथ में पड़ी सोने की पतली सी एकमात्र चूड़ी पर टिक गईं. उस की आंखों में एक चमक आ गई और वह चूड़ी उतारती हुई वापस कुत्ता गाड़ी की तरफ दौड़ पड़ी.
‘‘भैया, यह लो जुर्माना. मेरे बिल्लू को छोड़ दो,’’ वह चूड़ी इंस्पैक्टर की ओर बढ़ाती हुई बोली.
इंस्पैक्टर भौचक्का सा कभी उस के हाथ में पकड़ी सोने की चूड़ी की ओर और कभी उस कुत्ते की ओर देखने लगा. सहसा उस के चेहरे पर दया की एक भावना आ गई, ‘‘इस बार छोड़ देता हूं. अब बाहर मत निकलने देना,’’ उस ने कहा और कुत्ता गाड़ी आगे बढ़ गई.
लीला एकदम कुत्ते से लिपट गई, जैसे उसे अपना खोया हुआ कोई प्रियजन मिल गया हो और वह फूटफूट कर रोने लगी.
सीमा दरवाजा खोल कर उस के पास पहुंची और बोली, ‘‘चुप हो जाओ, लीला, पागल न बनो. अब तो तुम्हारा बिल्लू छूट गया, पर क्या कोई कुत्ते के लिए भी इतना परेशान होता है?’’
लीला ने सिर उठा कर कातर दृष्टि से उस की ओर देखा. उस के चेहरे से वेदना फूट पड़ी, ‘‘ऐसा न कहो, सीमा दीदी, ऐसा न कहो. यह बिल्लू है, मेरा प्यारा बिल्लू. जानती हो, यह इतना सा था जब मेरे पति ने इसे पाला था. उन्होंने खुद चाय पीनी छोड़ दी थी और दूध बचा कर इसे पिलाते थे, प्यार से इसे पुचकारते थे, दुलारते थे. और अब, अब मैं इसे दुत्कार कर छोड़ दूं, जल्लादों के हवाले कर दूं, इसलिए कि यह बूढ़ा हो गया है, बीमार है, इसे खुजली हो गई है. नहीं दीदी, नहीं, मैं इस की सेवा करूंगी, इस के जख्म धोऊंगी क्योंकि यह मेरे लिए साधारण कुत्ता नहीं है, यह बिल्लू है, मेरे पति का जान से भी प्यारा बिल्लू. और जो चीज मेरे पति को प्यारी है, वह मुझे भी प्यारी है, चाहे वह बीमार कुत्ता ही क्यों न हो.’’
सीमा ठगी सी खड़ी रह गई. आंसुओं के सागर में डूबी यह भोंदू क्या कह रही है. उसे लगा जैसे लीला के शब्द उस के कानों के परदों पर हथौड़ों की तरह पड़ रहे हों और उस का बिल्लू भौंभौं कर के उसे अपने घर से भगा देना चाहता हो.
अकस्मात ही उस की रुलाई फूट पड़ी और उस ने लीला का आंसुओंभरा चेहरा अपने दोनों हाथों में भर लिया, ‘‘मत रो, मेरी लीला, आज तुम ने मेरी आंखों के जाले साफ कर दिए हैं. आज मैं समझ गई कि तुम्हारा पति तुम से इतना प्यार क्यों करता है. तुम उस जानवर को भी प्यार करती हो जो तुम्हारे पति को प्यारा है. और मैं, मैं उन इंसानों से प्यार करने की भी कीमत मांगती हूं, जो अटूट बंधनों से मेरे पति के मन के साथ बंधे हैं. तुम्हारे घर का जर्राजर्रा तुम्हारे प्यार का दीवाना है और मेरे घर की एकएक ईंट मुझे अजनबी समझती है. लेकिन अब नहीं, मेरी लीला, अब ऐसा नहीं होगा.’’
लीला ने हैरान हो कर सीमा को देखा. सीमा ने अपने घर की तरफ रुख कर लिया. अपनी गलतियों को सुधारने की प्रबल इच्छा उस की आंखों में दिख रही थी.

हिन्दी बेचारी सिसक रही, कैसे इनको गढा गया।। - राज कुमार तिवारी

 नव युग के निर्माता से, नौ लिखा गया न पढ़ा गया।
हिन्दी बेचारी सिसक रही, कैसे इनको गढ़ा गया।।
हिन्दी बेचारी सिसक रही……………

नौ लिखके जो बतला दिया, बोले ये त्रिसूल है।
अभी नवासी,उन्नायसी में, फंसते सब स्कूल हैं।
बारहखडी को भूल गये हैं, ए बी सी के आगे।
पहाड़ बनी ककरहा है, पहाड़ा भी न पढ़ा गया।।
हिन्दी बेचारी सिसक रही…………….

पैमाना सारा भूले हैं, अद्धा पौना भी जाने न
कलम उठा ली हाथों में, तख्ती भी पहचानें ने
तख्ती से तख्ता पलटा है, कर्जा चुका नही पाये
लथ पथ काया से ये, हिन्दुस्तान गढ़ा गया।
हिन्दी बेचारी सिसक रही……………

चमडी गोरी सब उधड गई, भाषा उनकी खटकती है
हाय बाय सब करते हैं, हिन्दी सर को पटकती है।
अभी यहां कुछ गया नही, ठोकर से निकलेगी अः
मां की भाषा का ये चिप्पक, ऐसे नही जड़ा गया।
हिन्दी बेचारी सिसक रही……………

सात को छ कहने वाले, तीन को भी न जान सके
आठ को यू समझ रहे, पांच को वाई मान रहे।
हर भाषा का इल्म सभी को होना बहुत जरूरी है
राजभाषा पर जबरन, कुछ तो यहां जडा गया।
हिन्दी बेचारी सिसक रही……………
राज कुमार तिवारी (राज)