Tuesday, 5 September 2017

कभी तो प्यार पनपता होगा

कभी तो प्यार पनपता होगा,
तुम्हारे दिल के किसी कोने में,
जब तुम भी तन्हाई में रोते होंगे,
लेकर पल्लू को घर के कोनें में,

कभी तो तबीयत ख़राब होती होगी,
आँखें मूंदकर रातभर सोने में,
उस सुबह इंतज़ार तो रहता होगा,
वो दिख जाये किसी गली कोने में,

कभी तो प्यार पनपता होगा,
तुम्हारे दिल के किसी कोने में,

कभी तो सोचा होगा मुड़कर देखु,
क्यों धड़क रहा है आज दिल सीने में,
मेरा जिया क्यों नहीं मुस्काता है अब,
दुनिया भर के खेल खिलोनो में,

कभी तो प्यार पनपता होगा,
तुम्हारे दिल के किसी कोने में,

कभी तो बातें हसाती भी होगी मेरी,
जब होती होगी नमी, आँखों के कोनो में,
दिन तो तुम्हारा भी निकल जाता होगा,
पन्नो को उथल पुथल कर, रख किताब कोने में,

कभी तो प्यार पनपता होगा,
तुम्हारे दिल के किसी कोने में,

उल्फत

मिली है जो उल्फत नज़रों में तुमसे,
इस तरह खो जाएगी, की वापस न आएगी,
मोहब्बत ऐसी हो जाएगी,
की फिर नज़र न मिलाएगी,
जो ये होता थोड़ा भी अहसास,
तनहा उल्फत न करते।  

मिली है जो उल्फत नज़रों में तुमसे,
इस तरह ज़िंदगी ख्याल हो जायेगी, की गुबार न जाएगी,
ग़श में हर शाम जाएगी,
की गमदीदा ग़ज़ल बन जाएगी,
तुझ को न बनाया होता जो खास,
तनहा उल्फत न करते।          

मिली है जो उल्फत नज़रों में तुमसे,
इस गैहान में रूह खो आएगी, की चैन न पायेगी,
चिराग के चश्म न बनाते,
चेहरों पर जज्ब जो दिख जाते,
मांगते खुदी से मोहलत,
पर तनहा उल्फत न करते। 

Saturday, 2 September 2017

वो तितलियों सा

वो तितलियों सा सुबह को,
गुलों की तलाश में,
नगर नगर भटक गया,
शजर शजर में खो गया।

वो गुबार सा था शाम में,
रात तक ठहर गया,
बंदिशों की आग में,
मोम सा पिघल गया।

उसूलों के ख़ुमार में,
जब चट्टानों से टकरा गया,
ज़र्रा ज़र्रा बिखर गया,
धुआं धुआं सा रह गया।

जो खून सा जब उबल गया,
सैलाब बन के उमड़ गया,
बस्तियां वीरां वो कर गया,
हैरान शहर सा रह गया।

बुज़दिलों के रेलों में,
जाहिलों के मज़्मों में,
वो कुसूरवार सा बन गया,
सहम सहम के रह गया।

रुख्सती के लम्हों में,
वो पूछता है 'ज़ैद' मुझे,
क्या सूरत अब बदल गयी,
क्या गुलिस्तां संवर गया?

Friday, 1 September 2017

गुलाबी पेंसिल पार्ट -3

आज मुझे "वो" इत्तेफाक से वाटर पॉइंट के पास नज़र आ गई। उसके जूडे में आज एक के बजाय दो पेंसिले थीं। या तो घनी ज़ुल्फ़ों को सँभालने के लिए शायद एक पेंसिल कम पड़ रही थी, या ये इशारा था इस बात का, कि अब तन्हाइयो के सागर से मोहब्बत के जज़ीरे पर आने का वक़्त हो चला है। मुझे देखते ही बत्तीसी दिखाते हुए बोली, "तुम मेरा पीछा तो नही कर रहे मिस्टर? सुनो मेरा बॉयफ्रेंड इसी ऑफिस मे है, तुम्हारी हड्डियों का सुरमा बना कर आँखों में लगा लेगा।"

"हाँ जी! मुझे और काम ही क्या है, आपका पीछा करने की तो सैलरी उठाता हूँ मैं," मैंने जलकर जवाब दिया। ईव टीज़िंग या स्टॉकिंग की बात कोई मज़ाक में भी कहे तो भी मुझे पसंद नहीं था, चाहे फिर "वो" ही क्यों ना हो।

मेरा जवाब सुनकर वो मुँह बनाकर बोली, "कैसे जल कुक्कड़ से हो तुम, नो वंडर तुम्हे कोई बंदी नहीं मिली आजतक।"

"एक्सक्यूज़ मी मिस! अपनी सहेलियों को देखो कितना एडमायर करती हैं मुझे, माना मैकेनिकल से हूँ, पर अपने बंदी वाले डिपार्टमेंट में कभी नाकाबंदी नहीं रहीे," मैंने बड़े जोश से जवाब दिया।

इस बार वो टॉपिक चेंज करते हुए बोली, "अच्छा! आज सुबह कुछ ज़रूरी बात करने को कह रहे थे तुम?"

"अच्छा वो?" मैं पहले मुस्कुराया, फिर थोड़ा ठहर कर बोला, "मैं सोच रहा था...ऑफिस में कब तक ऐसे टुकड़ो में मिलते रहेंगे। चलो कहीं बाहर चलते है, कल वीकेंड भी है और दस्तूर भी ,साथ में डिनर करते है। आई वांट टु टेक यू टू एन अमेजिंग प्लेस, जहाँ की वाइब और फ़ूड दोनों हमारी पसंद के हिसाब से हैं।" हम दोनों ही फूडी थे और उसे भी मेरी तरह भीड़-भाड़ पसंद नहीं थी।

उसकी आँखों मे जैसे आसमान से तारे उतर आए, हल्की सी हैरानी भरी मुस्कान से पूछने लगी, "आर यू ऑफिशली आस्किंग में आउट मिस्टर साहिल?"

"आई गेस आई एम, मिस शिखा!" मुझ जैसे घाघ लड़के को भी शर्म सी आ गई ये कहते हुए।

मेरे चेहरे पर आये हया के रंग शायद उसने नोटिस कर लिए थे, तो मुझे चिढ़ाने के अंदाज़ में बोली, "मेरे तो बहुत चाहने वाले हैं, आपको इक़रार और बाकियों को इनकार करने की कोई माक़ूल वजह दीजिये मुझे।"

मैंने उसकी झील सी आँखों में झांककर जवाब दिया, "उनमें और मुझमें, बस इतना सा फ़र्क़ है कि वो आपकी खूबसूरत आँखों में खो जाना चाहते है और मैं आपकी इन आँखों में खुद को ढूँढना चाहता हूँ।" उसने कुछ जवाब ना दिया, बस खामोशी से एकटक मुझे देखती रही।

"कल शाम 8 बजे तैयार रहना और वो रेड ड्रेस पहन कर आना जो तुमने न्यू ईयर की पार्टी में पहनी थी," ये कहते हुए मैं वहाँ से चल दिया।

कल होने वाली मुलाक़ात की खुशी मुझे अभी से गूसबम्पस दे रही थी।

*गुलाबी पेंसिल पार्ट -2*


"इतनी मिलती है मेरी ग़ज़लों से सूरत तेरी।
लोग तुझको मेरा मेहबूब समझते होंगें।"

मैं ऑफिस के कैफिटेरिया में अदरक की चाय चुस्कियों के साथ-साथ खिड़की से सामने पार्क के खूबसूरत मंज़र का लुत्फ उठाने की नाकाम कोशिश कर रहा था। पहली बारिश के बाद कुदरत ने हरी घास का कालीन सा बिछा दिया था जैसे ज़मीन पर, लेकिन अंदर का वीराना बाहर की बहार पर भारी पड़ रहा था।

घड़ी में 12:00 बज रहे थे। इस वक़्त कैंटीन अमूमन वीरान रहती थी, मुझे सुकून के पलों में बैठकर चाय पीना अच्छा लगता था इसी वजह से मैं रोज़ इसी वक्त यहां चला आता।

तभी सामने से "वो" आती नज़र आई।

लबों पर वही मनमोहक मुस्कान लिए उसने मेरी तरफ हाथ हिलाया और फिर एक अदा से अपना हाथ जानबूझकर ज़ुल्फों में फिराया ताकि जूड़े में बंधी "पेंसिल" नुमाया हो जाये।

चाय का order देकर मेरी टेबल पर बैठती हुए बोली, "बहुत शिकायत मिल रही है आजकल तुम्हारी।"

"मैंने ऐसा क्या कर दिया मोहतमा?" बड़ी हैरानी से मैंने सवाल किया।

"ये क्या लिखते रहते हो फेसबुक पर, गुलाबी पेंसिल, ये पेंसिल वो पेंसिल। वैसे तो कहते फिरते हो के मुझे कलर ब्लाइंडनेस है। पर जनाब को पेंसिल के रंग बड़े पता रहते हैं?"

"अरे वो तो ऐसे ही लिख दिया। एक ज़माने में writer बनना चाहता था पर वक़्त ने इंजीनियर बना दिया, सही मायने में कुछ भी ना बन पाया ठीक से," मैंने तंजिया मुस्कुराहट के साथ जवाब दिया।

"ओह्ह! तो ऐसा क्या हो गया अचानक जो दबे गड़े अरमान फिर से फेसबुक पर अंगड़ाई लेने लगे हैं?" बड़ी हैरानी से ये सवाल पूछा उसने और फिर जवाब का इंतज़ार किया बिना ही, मेरे थोड़ा करीब आती हुए धीमी आवाज़ में मुस्कुराती हुई बोली, "कहीं मोहब्बत- वोहब्बत तो नहीं हो गयी खां?"

लड़कियों में एक खास अदा होती है... सबकुछ जान के भी अनजान बने रहना।

"अरे मोहब्बत-वोहब्बत तो सब किताबी बातें है,
यहां हर इंसान दूसरे को बस ज़रूरत में याद करता है," मैंने चाय का आखिरी घूंट भरकर खड़े होते हुए जवाब दिया।

"चलो मिलता हूं फिर," मैं जैसे ही जाने लगा वो मेरा हाथ पकड़कर मुझे अपने पास बिठाते हुए बोली, "इतनी जल्दी में क्यों हो तुम, थोड़ी देर काम नहीं करोगे तो ये कंपनी बन्द नहीं हो जाएगी। मूड खराब है क्या?"

"नहीं बस ऐसे ही, कभी-कभी सोचता हूं कि काश अपना पैशन ही फॉलो किया होता, कामयाब नही होता तो क्या, दिल को सुकून तो होता। यह प्रोडक्शन में 12-12 घंटे की शिफ्ट करो खड़े-खड़े, मज़दूरों की तरह। ना सैलरी इतनी अच्छी, ना जॉब की तसल्ली। ऊपर से घर की परेशानियां।"

"सब ठीक हो जाएगा, क्यों परेशान होते हो यार! अच्छा देखो! मैंने आज सिर्फ तुम्हारे लिए गुलाबी पेंसिल लगाई है जूड़े में।"

मैं मुस्कुराये बिना ना रह सका। एक पल में मेरा गुस्सा, मेरे नेगेटिव थॉट्स सभी को एक प्यारी से फीलिंग ने रिप्लेस कर दिया।

मेरी मुस्कुराहट देख कर वो बोली," पता है लड़कियाँ कितनी मेहनत करती है आँखों में आईलाइनर और मस्कारा लगाती है, चहेरे पर कनसीलर, नाक में नोज़ पिन, कानों में ईयररिंग्स, गले में नेकलेस, नाखूनों पर नेल पेंट और ना जाने क्या क्या...पर जनाब का दिल आया तो किस पर.. एक पेंसिल पर। पहले पता होता तो कितना खर्चा बच जाता बेचारियों का," वो लास्ट लाइन पर हँसती हुई बोली।

मैंने इस बार उसकी आँखों मे आँखें डाल कर कहा "तुम जानती हो मेरी निगाहों का मरकज़ सिर्फ एक ही लड़की है। दुनिया क्या करती है मुझे कोई मतलब नहीं।"

अक्सर इस तरह की बात वो घुमा दिया करती थी।

इस बार मेरी बात को वो घुमा ना पाई और शरमा कर नीची निगाह करके मुस्कुराकर धीमे से बोली, "आपको पता है ना कि आप पागल हैं।"

अक्सर वो ऐसे मौक़ो पर "तुम" से "आप" पर आ जाती थी। वैसे कहा जाता है कि "तू" शब्द में ज़्यादा अपनापन होता है पर मुझे उसका "आप" कहना ज़्यादा भाता था।

"अच्छा तुम्हारा बर्थडे है अगले हफ्ते। क्या गिफ्ट चाहिए?" उसने नज़रें उठा कर बात बदलते हुए सवाल किया
मैंने मुस्कुराते हुए जवाब दिया, "गिफ्ट तो मिल चुका मुझे, अब किसी और गिफ्ट की तमन्ना बाक़ी नहीं, पर एक मासूम सी ख्वाहिश है मेरी, कि मैं तुम्हारे जूड़े से इस पेंसिल को खींच लूँ और तुम्हारी ये घनी स्याह जुल्फें..खुल कर तुम्हारे शानो पर बिखर जाएं। और जब एक अदा से तुम अपने चेहरे से इन्हें हटाओ तो ऐसा लगे जैसे पूनम का चांद बादलों से निकल आया हो।"

एक पल के लिए वो मेरे लफ़्ज़ों के सहर में डूब सी गयी, फिर अचानक मेरे इरादे समझ कर जल्दी से बोली।

"ऐसा कुछ सोचना भी मत, बड़ी मुश्किल से सेट किया है ये जूड़ा।"

उसकी बात पूरी होने से पहले ही मैं पेंसिल खींच चुका था, उसकी जुल्फ़ें जूड़े की कैद से आज़ाद होकर बिखर गई थीं और खिड़की से आती हवाओ में लहराने लगी थीं।

हालांकि ये पल ऐसा नहीं था जैसा मेरे तसव्वुर में था। पर जो हमारा साथ था वो मेरे तसव्वुर से ज़्यादा हसीन था।

"चलो मैं चलता हूँ, शाम में मुलाक़ात होगी," मैंने उठते हुए कहा। हालांकि मेरा दिल मुझे एक कदम भी बढ़ाने से रोक रहा था पर और भी ग़म थे ज़माने में मोहब्बत के सिवा।

मैंने वो गुलाबी पेंसिल अपने पास रख ली थी।

कैफिटेरिया के दरवाजे से मुड़कर मैंने देखा तो, हाथ मे चाय का कप लिए, वो मुझे ही देख रही थी।

मैंने पेंसिल दिखाते हुए होंठों के इशारे से कहा, "थैंक्स फॉर दि एडवांस बर्थडे गिफ्ट।"

उसने आँखों के इशारे से कहा, "वेलकम।"

मेरे दिल का मौसम बिल्कुल बदल चुका था। अब अंदर भी बाहर की तरह चारों तरफ फूल खिले हुए थे। अक्सर हालात हमारे काबू में नहीं होते, लेकिन किसी खास शख़्स का साथ होना आपको हालात से लड़ने की हिम्मत दे देता है।

*गुलाबी पेंसिल*

खुली ज़ुल्फ जिसे उर्दू में "बरहमी" कहते है, हमेशा से शायरों और कवियों का पसंदीदा मौज़ू रहा है।

किसी ने खुली ज़ुल्फों को घटा कहा तो किसी ने बलखाती ज़ुल्फों को नागिन।

कभी ज़ुल्फ को काला जादू कहा गया तो कभी होंठों और रुख़्सारों को चूमते गेसुओं को बदतमीज़।

पर तेरी खुली नही..बंधी हुई ज़ुल्फें मुझे पसंद हैं। जब तू मेरे सामने से चलती हुई मेरे क़रीब से गुज़रती है.. अपने ही ख्यालों में खोई, ना जाने किस सोच में डूबी और चलते चलते एक ही झटके से अपने बालों को पकड़ कर उन्हें जूड़े में बांध उसमें पेंसिल फसा लेने का ये हुनर तुझे बहुत खास बनाता है।

तुझसे बात करते वक़्त तेरी उसी पेंसिल में मेरा दिल अटका सा रहता है। कभी संजीदा सी गुफ़्तगू करते हुए मुझसे, तू पेंसिल दांतों में दबाये बालो को बांधकर उसमें जब पेंसिल लगाती है तो इस अदा में डूबकर सब कुछ भूल सा जाता हूँ मैं।

कई मर्तबा मैंने महसूस किया है कि तेरी पेंसिल का रंग तेरा मूड ज़ाहिर करता है। जिस दिन तेरे बालो में लाल पेंसिल हो उस दिन तू ज़िंदादिल लगती है.. दिनभर दिल खोल के हँसती तो कभी बच्चों सी शरारती मुस्कान लिए घूमती। उस दिन तेरी आंखों में, मैं खुद के लिए प्यार देखता हूँ।

पीली पेंसिल का मतलब है आज तू बहुत खुश है। काली पेंसिल गर तूने जूड़े में लगा रखी है तो ज़रूर तू आज लड़ के आयी है या किसी से लड़ने की तैयारी में है। उस दिन तेरे क़रीब जाने से भी डर लगता है मुझे।

जिस दिन उस पेंसिल का रंग सफेद हो तो तेरे चेहरे पर एक सुकून सा हावी होता है, और मिज़ाज़ सूफियाना लगता है।

पेंसिल का रंग गहरा नीला हो तो मतलब तू बहुत उदास है।

मेरी पसंदीदा पेंसिल का रंग गुलाबी है.. क्योंकि उस दिन रोमानी एहसासात तुझ पर हावी रहता है। मेरी हर बात पर शर्मा कर नीची निगाह करके तेरा मुस्कुराना मेरे दिल की धड़कनें बढ़ा देता है। गुलाबी पेंसिल वाले दिन का मुझे बेसब्री से इंतज़ार रहता है क्योंकि वो दिन मेरे इज़हार-ए-मोहब्बत का दिन होता है।

ये एक राज़ की बात है जो मैं कभी तुझसे कह ना पाऊँगा, कि तुझको समझने में तेरी पेंसिल, मददगार रही है मेरी।

**रात**

सबको सुलाकर आती है जगाने मुझे,
मुझसे बस अकेले में ही मिलती है रात

रोज़ मेरे काँधे पर सर रखकर रोती है,
मेरी ही तरह बिल्कुल तन्हा है रात।

याद दिन में भी आते हैं बिछड़ने वाले हमें,
रिवायतों में लेकिन बदनाम सिर्फ़ होती है रात।

सुबह तक साथ चलता हूँ इसके मगर,
ना जाने किस मोड़ पर जुदा हो जाती है रात।

तुम्हारे जितनी ही है ये मेरे दिल को अज़ीज़,
तुम्हारी ही तरह रोज़ मुझे छोड़कर जाती है रात।