"इतनी मिलती है मेरी ग़ज़लों से सूरत तेरी।
लोग तुझको मेरा मेहबूब समझते होंगें।"
मैं ऑफिस के कैफिटेरिया में अदरक की चाय चुस्कियों के साथ-साथ खिड़की से सामने पार्क के खूबसूरत मंज़र का लुत्फ उठाने की नाकाम कोशिश कर रहा था। पहली बारिश के बाद कुदरत ने हरी घास का कालीन सा बिछा दिया था जैसे ज़मीन पर, लेकिन अंदर का वीराना बाहर की बहार पर भारी पड़ रहा था।
घड़ी में 12:00 बज रहे थे। इस वक़्त कैंटीन अमूमन वीरान रहती थी, मुझे सुकून के पलों में बैठकर चाय पीना अच्छा लगता था इसी वजह से मैं रोज़ इसी वक्त यहां चला आता।
तभी सामने से "वो" आती नज़र आई।
लबों पर वही मनमोहक मुस्कान लिए उसने मेरी तरफ हाथ हिलाया और फिर एक अदा से अपना हाथ जानबूझकर ज़ुल्फों में फिराया ताकि जूड़े में बंधी "पेंसिल" नुमाया हो जाये।
चाय का order देकर मेरी टेबल पर बैठती हुए बोली, "बहुत शिकायत मिल रही है आजकल तुम्हारी।"
"मैंने ऐसा क्या कर दिया मोहतमा?" बड़ी हैरानी से मैंने सवाल किया।
"ये क्या लिखते रहते हो फेसबुक पर, गुलाबी पेंसिल, ये पेंसिल वो पेंसिल। वैसे तो कहते फिरते हो के मुझे कलर ब्लाइंडनेस है। पर जनाब को पेंसिल के रंग बड़े पता रहते हैं?"
"अरे वो तो ऐसे ही लिख दिया। एक ज़माने में writer बनना चाहता था पर वक़्त ने इंजीनियर बना दिया, सही मायने में कुछ भी ना बन पाया ठीक से," मैंने तंजिया मुस्कुराहट के साथ जवाब दिया।
"ओह्ह! तो ऐसा क्या हो गया अचानक जो दबे गड़े अरमान फिर से फेसबुक पर अंगड़ाई लेने लगे हैं?" बड़ी हैरानी से ये सवाल पूछा उसने और फिर जवाब का इंतज़ार किया बिना ही, मेरे थोड़ा करीब आती हुए धीमी आवाज़ में मुस्कुराती हुई बोली, "कहीं मोहब्बत- वोहब्बत तो नहीं हो गयी खां?"
लड़कियों में एक खास अदा होती है... सबकुछ जान के भी अनजान बने रहना।
"अरे मोहब्बत-वोहब्बत तो सब किताबी बातें है,
यहां हर इंसान दूसरे को बस ज़रूरत में याद करता है," मैंने चाय का आखिरी घूंट भरकर खड़े होते हुए जवाब दिया।
"चलो मिलता हूं फिर," मैं जैसे ही जाने लगा वो मेरा हाथ पकड़कर मुझे अपने पास बिठाते हुए बोली, "इतनी जल्दी में क्यों हो तुम, थोड़ी देर काम नहीं करोगे तो ये कंपनी बन्द नहीं हो जाएगी। मूड खराब है क्या?"
"नहीं बस ऐसे ही, कभी-कभी सोचता हूं कि काश अपना पैशन ही फॉलो किया होता, कामयाब नही होता तो क्या, दिल को सुकून तो होता। यह प्रोडक्शन में 12-12 घंटे की शिफ्ट करो खड़े-खड़े, मज़दूरों की तरह। ना सैलरी इतनी अच्छी, ना जॉब की तसल्ली। ऊपर से घर की परेशानियां।"
"सब ठीक हो जाएगा, क्यों परेशान होते हो यार! अच्छा देखो! मैंने आज सिर्फ तुम्हारे लिए गुलाबी पेंसिल लगाई है जूड़े में।"
मैं मुस्कुराये बिना ना रह सका। एक पल में मेरा गुस्सा, मेरे नेगेटिव थॉट्स सभी को एक प्यारी से फीलिंग ने रिप्लेस कर दिया।
मेरी मुस्कुराहट देख कर वो बोली," पता है लड़कियाँ कितनी मेहनत करती है आँखों में आईलाइनर और मस्कारा लगाती है, चहेरे पर कनसीलर, नाक में नोज़ पिन, कानों में ईयररिंग्स, गले में नेकलेस, नाखूनों पर नेल पेंट और ना जाने क्या क्या...पर जनाब का दिल आया तो किस पर.. एक पेंसिल पर। पहले पता होता तो कितना खर्चा बच जाता बेचारियों का," वो लास्ट लाइन पर हँसती हुई बोली।
मैंने इस बार उसकी आँखों मे आँखें डाल कर कहा "तुम जानती हो मेरी निगाहों का मरकज़ सिर्फ एक ही लड़की है। दुनिया क्या करती है मुझे कोई मतलब नहीं।"
अक्सर इस तरह की बात वो घुमा दिया करती थी।
इस बार मेरी बात को वो घुमा ना पाई और शरमा कर नीची निगाह करके मुस्कुराकर धीमे से बोली, "आपको पता है ना कि आप पागल हैं।"
अक्सर वो ऐसे मौक़ो पर "तुम" से "आप" पर आ जाती थी। वैसे कहा जाता है कि "तू" शब्द में ज़्यादा अपनापन होता है पर मुझे उसका "आप" कहना ज़्यादा भाता था।
"अच्छा तुम्हारा बर्थडे है अगले हफ्ते। क्या गिफ्ट चाहिए?" उसने नज़रें उठा कर बात बदलते हुए सवाल किया
मैंने मुस्कुराते हुए जवाब दिया, "गिफ्ट तो मिल चुका मुझे, अब किसी और गिफ्ट की तमन्ना बाक़ी नहीं, पर एक मासूम सी ख्वाहिश है मेरी, कि मैं तुम्हारे जूड़े से इस पेंसिल को खींच लूँ और तुम्हारी ये घनी स्याह जुल्फें..खुल कर तुम्हारे शानो पर बिखर जाएं। और जब एक अदा से तुम अपने चेहरे से इन्हें हटाओ तो ऐसा लगे जैसे पूनम का चांद बादलों से निकल आया हो।"
एक पल के लिए वो मेरे लफ़्ज़ों के सहर में डूब सी गयी, फिर अचानक मेरे इरादे समझ कर जल्दी से बोली।
"ऐसा कुछ सोचना भी मत, बड़ी मुश्किल से सेट किया है ये जूड़ा।"
उसकी बात पूरी होने से पहले ही मैं पेंसिल खींच चुका था, उसकी जुल्फ़ें जूड़े की कैद से आज़ाद होकर बिखर गई थीं और खिड़की से आती हवाओ में लहराने लगी थीं।
हालांकि ये पल ऐसा नहीं था जैसा मेरे तसव्वुर में था। पर जो हमारा साथ था वो मेरे तसव्वुर से ज़्यादा हसीन था।
"चलो मैं चलता हूँ, शाम में मुलाक़ात होगी," मैंने उठते हुए कहा। हालांकि मेरा दिल मुझे एक कदम भी बढ़ाने से रोक रहा था पर और भी ग़म थे ज़माने में मोहब्बत के सिवा।
मैंने वो गुलाबी पेंसिल अपने पास रख ली थी।
कैफिटेरिया के दरवाजे से मुड़कर मैंने देखा तो, हाथ मे चाय का कप लिए, वो मुझे ही देख रही थी।
मैंने पेंसिल दिखाते हुए होंठों के इशारे से कहा, "थैंक्स फॉर दि एडवांस बर्थडे गिफ्ट।"
उसने आँखों के इशारे से कहा, "वेलकम।"
मेरे दिल का मौसम बिल्कुल बदल चुका था। अब अंदर भी बाहर की तरह चारों तरफ फूल खिले हुए थे। अक्सर हालात हमारे काबू में नहीं होते, लेकिन किसी खास शख़्स का साथ होना आपको हालात से लड़ने की हिम्मत दे देता है।